उपन्यास >> आंख की किरकिरी आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
|
10 पाठकों को प्रिय 103 पाठक हैं |
नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....
6
एक दिन बारिश हो रही थी। बादल घिरे थे। ऐसे में बदन पर एक सुवासित महीन चादर और जुही की माला गले में डाले महेंद्र मगन-मन अपने सोने के कमरे में पहुँचा। अचानक आशा को चौंका देने के विचार से- जूतों की आवाज न होने दी। झाँक कर देखा, पूरब की खुली खिड़की से पानी के छींटे लिए हवा के तीखे झोंके कमरे में आ रहे हैं, दीया बुझ गया है और आशा नीचे बिछावन पर पड़ी रो रही है।
महेंद्र जल्दी से उसके करीब गया और पूछा - 'क्या बात है?' वह दूने आवेग से रोने लगी। बड़ी देर के बाद महेंद्र को जवाब मिला कि 'मौसी से और बर्दाश्त न हो सका। वह अपने फुफेरे भाई के यहाँ चली गईं।'
महेंद्र के मन में आया, 'गईं तो गईं, लेकिन बदली की ऐसी सुहानी साँझ को खराब कर गईं।'
अंत में सारा गुस्सा माँ पर आया। वही तो इन सारे अनर्थों की जड़ है।
महेंद्र ने कहा - 'हम भी वहीं चले जाएँगे, जहाँ चाची गई हैं। देखते हैं, माँ किससे झगड़ती है?'
और उसने नाहक ही शोर-गुल के साथ असबाब बाँधने के लिए कुली को बुलाना शुरू कर दिया।
राजलक्ष्मी समझ गईं। धीरे-धीरे महेंद्र के पास आईं। शांत स्वर में पूछा - 'कहाँ जा रहा है?'
महेंद्र ने पहले कोई जवाब ही न दिया। दो-तीन बार पूछे जाने पर बताया- 'चाची के पास।'
राजलक्ष्मीं बोली - 'अरे तो मैं ही उन्हें यहाँ बुला देती हूँ।'
राजलक्ष्मी उसी समय पालकी पर सवार हो कर अन्नपूर्णा के घर गईं। गले में कपड़ा डाल कर हाथ जोड़ते हुए कहा - 'खुश हो मँझली बहू, मुझे माफ करो!'
अन्नपूर्णा ने जल्दी-जल्दी उनके पैरों की धूल ली। कातर स्वर में कहा - 'दीदी, मुझे दोषी क्यों बना रहीं? तुम जैसा हुक्म दोगी, वैसा ही करूँगी।'
राजलक्ष्मी ने कहा - 'तुम चली आई हो, तो मेरे बेटा-पतोहू भी घर छोड़ कर यहीं आ रहे हैं।'
कहते-कहते वह रो पड़ी।
जिठानी-देवरानी दोनों घर लौट आईं। तब भी वर्षा हो रही थी। अन्नपूर्णा जब महेंद्र के कमरे में पहुँचीं, आशा का रोना थम चुका था। महेंद्र बातों से उसे हँसाने की कोशिश कर रहा था। आसार थे कि बदलियाँ यूँ ही नहीं गुजर जाएँगी।
अन्नपूर्णा ने कहा - 'चुन्नी, तू मुझे घर में भी न रहने देगी और कहीं जाऊँ तो भी पीछे लग जाएगी। क्या मेरे लिए कहीं चैन नहीं!'
आशा चौंक पड़ी।
महेंद्र बड़ा ही खीझ कर बोला - 'क्यों चाची, चुन्नी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?'
अन्नपूर्णा ने कहा - 'बहू की ऐसी बेहयाई बर्दाश्त न हो सकी तभी यहाँ से चली गई थी। फिर अपनी सास को रुला कर मुँहजली ने मुझे क्यों बुलवाया?'
|