उपन्यास >> आंख की किरकिरी आंख की किरकिरीरबीन्द्रनाथ टैगोर
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नोबेल पुरस्कार प्राप्त रचनाकार की कलम का कमाल-एक अनूठी रचना.....
महेंद्र - 'अब भी प्रायश्चित करने का समय है। मैं अगर दुविधा न करूँ, सब-कुछ छोड़-छाड़ कर चल दूँ तो तुम मेरे साथ चलने को तैयार हो?'
यह कह कर महेंद्र ने जोर से उसके दोनों हाथ पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। विनोदिनी बोली - 'छोड़ो, डर लगता है।'
महेंद्र - 'लगने दो। पहले बताओ कि तुम मेरे साथ चलोगी?'
विनोदिनी - 'नहीं! नहीं! हर्गिज नहीं।'
महेंद्र - 'क्यों नहीं चलोगी? तुमने ही मुझे खींच कर सर्वनाश के जबड़े में पहुँचाया। अब आज तुम मुझे छोड़ नहीं सकतीं। चलना ही पड़ेगा तुम्हें।'
महेंद्र ने बलपूर्वक विनोदिनी को अपनी छाती से लगाया और कस कर पकड़ते हुए कहा - 'मैं तुम्हें ले जा कर ही रहूँगा और चाहे जैसे भी हो, प्यार तुम्हें करना ही पड़ेगा।'
विनोदिनी ने जबरदस्ती अपने को उसके शिंकजे से छुड़ा लिया। महेंद्र ने कहा - 'चारों तरफ आग लगा दी है, अब बुझा भी नहीं सकती, भाग भी नहीं सकती।'
कहते-कहते महेंद्र की आवाज ऊँची हो आई। जोर से बोला - 'आखिर ऐसा खेल तुमने खेला क्यों, विनोद! अब इसे खेल कह कर टालने से छुटकारा नहीं। तुम्हारी और मेरी अब एक ही मौत है।'
राजलक्ष्मी अंदर आई। बोलीं - 'क्या कर रहा है, महेंद्र?'
महेंद्र की उन्मत्त निगाह पल भर को माँ की ओर फिर गई। उसके बाद उसने फिर विनोदिनी की तरफ देख कर कहा - 'मैं सब-कुछ छोड़-छाड़ कर जा रहा हूँ, बताओ, तुम मेरे साथ चलती हो?'
विनोदिनी ने नाराज राजलक्ष्मी के चेहरे की ओर एक बार देखा और अडिग भाव से महेंद्र का हाथ थाम कर बोली - 'चलूँगी।'
महेंद्र ने कहा - 'तो आज भर इंतजार करो! मैं चलता हूँ। कल से तुम्हारे सिवा मेरा और कोई न होगा।'
कह कर महेंद्र चला गया।
इतने में धोबी आ गया। विनोदिनी से उसने कहा - 'माँ जी, अब तो जाने ही दीजिए। आज फुरसत नहीं है, तो मैं कल आ कर कपड़े ले जाऊँगा।'
नौकरानी आई - 'बहू जी, साईस ने बताया है, घोड़े का दाना खत्म हो गया है।'
विनोदिनी इकट्ठा सात दिन का दाना अस्तबल में भिजवा दिया करती थी और खुद खिड़की पर खड़ी हो कर घोड़ों के खाने पर नजर रखती थी।
नौकर गोपाल ने आ कर खबर दी - बीबीजी, झाडूदार से दादा जी (साधुचरण) की झड़प हो गई है। वह कह रहा है, उसके तेल का हिसाब समझ लें तो वह दीवान जी से अपना लेना-देना चुका कर नौकरी छोड़ देगा।'
गृहस्थी के सारे काम-काज पहले की तरह चलते रहे।
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