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उपन्यास >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 2100
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

रह-रहकर ठण्डी हवा शरीर से छू जा रही थी शीतल हुआ जा रहा था शरीर। लेकिन मन?"आज अगर लाबू की एक लड़की होती "हाय-हाय, अपना हृदय खोलकर रख देती उसके आगे।

तभी लाबू की निगाह एक लड़की पर पड़ी।

इस तरफ़ के मकान सब ऐसे ही बने हैं। सामने का सदर दरवाज़ा खूब मज़बूत और हर वक्त बन्द। लेकिन घर के पिछवाड़े की ओर, जिधर आँगन है, कुआँ है, बागीची है, रसोई और भण्डार है, उधर एक साधारण-सा बाँस का बेड़ा है। नाम मात्र का एक फाटक ईंट की दीवार से टिका हआ है। वह भी सिवाय रात के दिन भर खुला ही रहता है। अतएव कोई भी, कभी भी आँगन के इस फाटक से घुस सकता है।

और सब घरों में तो नल भी है लेकिन लाबू के ससुर घर पर नल लगवाने से पहले ही चल बसे थे। किसी तरह से बिजली ले पाये थे बस।

लेकिन इतना ज़रूर है, नल न होने के कारण असुविधा ज़रा भी नहीं होती है। बृजरानी दोनों वक्त आकर कुएँ से पानी खींचकर पलक झपकते दोनों हौदियाँ और जहाँ जितनी बाल्टियाँ, घड़े, मटके हैं, सब भर-भराकर रख जाती है।

पर इस समय कौन आया? जो आया उसे देखकर लाबू हड़बड़ा उठी। जबकि उसका आना कोई नया नहीं। जब-तब आया करती है।

लाबू के पास ही, कुएँ के चबूतरे पर बैठते हुए मिंटू बोली, “आपके यहाँ पर बहुत अच्छी हवा है, चाचीजी।"

लाबू बोली, “हाँ री। तभी तो चुपचाप बैठे-बैठे हवा खा रही हूँ। तू इस समय कैसे निकल पड़ी?"

"यूँ ही चली आयी।" उठकर मिंटू ने चम्पा के दो फूल तोड़े और बोली, “ये फूल कितने सुन्दर हैं!'

“और तोड़ ले न?”

“नहीं, पेड़ पर ही ज्यादा अच्छे लग रहे हैं।"

"घर का क्या हाल-चाल है?”

“हाल-चाल नया क्या होगा? माँ का बादी का दर्द बढ़ा है।”

“जाड़ा तो कम हो गया है तब क्यों दर्द बढ़ा?"

देखते-देखते वक्त बीत जाता है। पिछले फागुन में अरुण की नौकरी लगी थी घूमकर फिर फागुन आ गया।"

और कोई समय होता तो मिंटू अरुण का प्रसंग चालू रखती, 'बिल्कुल डेली पैसेंजर वाला बाबू हो गया है अरुणदा। हमारे घर के सामने ही से तो लौटता है।'

आज मिंटू ने ये सब कुछ नहीं कहा। हाथ में पकड़े दोनों फूलों को देखती रही। लाबू ने पूछा, “चाय पीएगी?'

"न !"

"क्यों री? मैं तो थोड़ी देर बाद में बनाती ही।"

“तो क्या हुआ? यहाँ इतना अच्छा है बैठे रहना अच्छा लग रहा है।"

लाबू बोली, “लो सुनो लड़की की बात"घर तो तेरा इतना सुन्दर है!"

लाबू को लगा मिंटू कुछ कहना चाह रही है।

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