कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
अब हरीश कई बार पूर्णिमा से कहता था-''यह सैर-सपाटा तो चार दिनों का है।
भविष्य का कार्यक्रम क्या रहेगा?''
पर पूर्णिमा कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देती थी।
एक शनिवार को सैर-सपाटे के बाद पूर्णिमा बोली-''कल मैं नहीं आ सकूंगी। कुछ
जरूरी चिट्ठी-पत्री लिखनी है।
''मैं आ जाऊं?''-कह कर वह हँसता हुआ बोला-''अरे, मुझे तो अभी तक यह भी पता
नहीं कि तुम किस होटल में रहती हो।''
पर पूर्णिमा ने इस तरह मना कर दिया कि हरीश ने फिर उसके यहां जाने की बात
नहीं उठाई। वह समझ गया कि पूर्णिमा किसी सस्ती जगह पर ठहरी होगी, इसीलिए
वह उसे वहां ले जाना नहीं चाहती।
अगले दिन रविवार था, पर पूर्णिमा के आने की सम्भावना न होने के कारण हरीश
देर तक बिस्तरे से ही नहीं उठा। सरजूप्रसाद उसके कमरे के सामने से राउण्ड
करता हुआ जा रहा था; अभी तक हरीश को बिस्तरे पर पड़ा देख कर बोला-''आज कोई
प्रोग्राम नहीं है क्या?'' हरीश ने संक्षिप्त रूप से कहा-''नहीं।''
सरजूप्रसाद ने कहा-''मालुम होता है, कोई साथी नहीं है।''
हरीश ने खिन्न होकर कहा-''हां।''
''तो आज लाट साहब के-क्या कहते हैं, राज्यपाल कें-भवन की सैर कर आइए। वह
बहुत सुन्दर स्थान है और रविवार को ही जनता के लिए खुलता भी है।''
हरीश बोला-''अरे, उसमें क्या होगा! यहां राष्ट्रपति भवन और प्रधान मन्त्री
के भवन को छाने पड़े हैं।''
इस पर सरजूप्रसाद चुनौती के स्वर में बोला-''अजी, आपका राष्ट्रपति भवन तो
इसके सामने कुछ नहीं है। यहां के भवन में इतनी जमीन है कि उसमें पांच
राष्ट्रपति भवन समा सकते हैं फिर प्राकृतिक सौन्दर्य, जगल, बाग-बगीचा और
इसके अलावा बहुत भारी गाफकोर्स है।''
सरजू ने गुलमर्ग का गाफकोर्स नहीं देखा था, इसलिए उसने सावधानी के साथ
कहा-''राष्ट्रपति-भवन और सारे राज्यों के राजभवन एक तरफ और नैनीताल का
राजभवन एक तरफ।''
हरीश बोला-''इधर यात्रियों को ठहरने की जगह नहीं मिलती और एक-दो
व्यक्तियों के लिए इतना बड़ा स्थान रखा गया है! क्या यही लोकतन्त्र है?''
सरजूप्रसाद जल्दी में था, बोला-''जाकर देख तो आइए, फिर बहस करिएगा।''
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