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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


हरीश बोला-''चूड़ियां आप रहने दीजिए, पर यह तो बड़ी अजीब परिस्थिति है। कहिए, तो मैं उनको जाकर समझाऊं।''

पूर्णिमा बोली-''वे तो उसी समय लखनऊ रवाना हो गए। मैं अकेली रह गई।
हरीश ने कुछ सोचा, फिर उसने रुपये निकाल कर दे दिए।
बोला-'अभी दो सौ लीजिए। कल बैंक से और निकालूगा, तो दूंगा।'

उस दिन दोनों पूर्व निश्चय के अनुसार भीमताल गए, नौकुचिया ताल में दोनों बड़ी देर तक नाव पर सैर करते रहे। बस तो छूट चुकी थी-बड़ी मुश्किल से वे रात नौ बजे नैनीताल वापस लौटे।

सैर-सपाटे का कार्यक्रम पूर्ववत जारी रहा, पर इधर सिनेमा देखना ज्यादा बढ़ गया। यहां अधिक सिनेमाघर तो थे नहीं, इसलिए सिनेमा एक हद तक ही देखे जा सकते थे। अब पूर्णिमा अकसर सरजूप्रसाद के होटल में ही खाना खाती थी, पर वह हमेशा रात के नौ बजते ही चली जाती थी।

हरीश को नैनीताल में छ: हफ्ते से ऊपर हो चुके थे और इस बीच काफी खर्च हो चुका था। इसमें सात सौ की वह रकम भी शामिल थी, जो पूर्णिमा को उधार के रूप में दिए गए थे। सरजू ने भी सात सौ से ऊपर खींच लिया था।

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