कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
तीनों साथ-साथ बाजार के अन्दर से होते हुए चाइना पीक की तरफ चले। बाजार के
अन्दर पहुंचकर पूर्णिमा बोली-''ऊपर चाय-वाय तो मिल जाएगी? कुछ दिक्कत तो न
होगी?''
हरीश बोला-''हां, पर वहां पानी नहीं है, इसलिए चाय छ: आने प्याली मिलती
है। खाने की चीज कोई खास नहीं मिलती है। हां, वह चाय वाला पकौडियां बनाता
है, जिसे वह मनमाने दाम पर बेचता है।''
यह कह कर हरीश एक दुकान के सामने रुका और उसने एक पैकेट बिस्कुट, मक्खन
तथा कुछ अन्य चीजें लीं।
पूर्णिमा का इशारा पाकर यादवचन्द्र भी सामान लेने के लिए उतर रहा था कि
हरीश ने अत्यन्त आग्रह के साथ उसे रोका, बोला-''अरे, क्या मैं इतनी चीजें
केवल अपने लिए ले रहा हूं? आप लोगों का साथ हुआ, तो कुछ तो सत्कार करना
चाहिए।''
पूर्णिमा बोली-''यह बात तो दोतरफा है।''
पर हरीश के अनुरोध पर और कुछ नहीं लिया गया। हरीश बोला-''अभी तो उधर भी
खर्च होगा। आप घबड़ाते क्यों हैं?''
ऊपर चढ़ते समय मालूम हुआ कि यादवचन्द्र का घोड़ा कुछ कमजोर है, इसलिए
पूर्णिमा और हरीश बार-बार आगे निकल जाते और जब वे अधिक आगे निकल जाते, तो
रुक कर यादवचन्द्र की प्रतीक्षा करते।
उस दिन का वह भ्रमण बहुत आनन्दपूर्ण रहा। अलग होते समय यह तय हुआ कि बाकी
द्रष्टव्य स्थान भी साथ साथ देखे जाएं।
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