कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
हरीश की छुट्टियां खत्म हो रही थीं। उसे 8,600 फुट पर स्थित चाइना पीक
बहुत पसन्द आया था, इसलिए वह आज फिर वहां जाने की तैयारी कर रहा था।
'शेडीग्रोव' रेस्टोरेन्ट में चाय पीकर जाने का कार्यक्रम था। वह चाय पीता
जाता था और रेस्टोस्पेट में बैठे हुए दूसरे लोगों को ताड़ता जाता था। यों
ही, कोई खास मतलब नहीं था। फिर भी, जब उसने चाय की हर चुस्की के साथ
इधर-उधर देखा, तो उसे यह सन्देह हुआ कि एक युवती उसे ध्यान से देख रही है।
हां, वह बराबर उसे देख रही थी। हरीश ने टाई कड़ी कर ली और चूस्ती से चाय की
चुस्की लेने लगा। वह जान-बूझ कर दूसरी तरफ देखता रहा, पर जब फिर उधर
दृष्टि दौड़ाई, तो भी वह महिला उसकी तरफ देख रही थी।
उस युवती के साथ एक युवक भी था, जो सम्भवत: उसका पति था। हरीश ने सोचा-यह
अजीब बात है कि सुन्दरियों के पति कुछ बुद्धू से होते हैं। इस युवक में भी
इस नियम का व्यतिक्रम नहीं हुआ।
हरीश बिना कारण कुछ दुखी हो गया, पर कार्यक्रम तो बना ही हुआ था; इसलिए वह
बिल चुकाकर नीचे घोड़ों के अड्डे पर पहुंचा। अभी वह घोड़ा चुन भी नहीं पाया
था कि वही जोड़ी घोड़ों के अड्डे पर पहुंची। उस युवती ने आगे बढ़कर हरीश से
कहा-''माफ कीजिएगा, क्या आप चाइना पीक जा रहे हैं?''
हरीश बोला-''हां, और आप लोग?''
''हम लोग भी वहीं जा रहे हैं। चलिए, अच्छा हुआ-साथ रहेगा। आप तो इसके पहले
भी गए होंगे...हम तो पहली बार आए हैं।''
हरीश ने कहा-''रास्ता बहुत सीधा है। यहां तो कोई वैसा टेढ़ा रास्ता नहीं
है, जैसा कश्मीर में होता है।''
''तो क्या आप कश्मीर भी गए हैं?''
हरीश नम्रतापूर्वक झेंप के साथ बोला-''जी हां, यहां तो बस यही शौक है-हर
साल हिमालय की गोद में कहीं न कहीं जाना। बड़ी शान्ति मिलती है।''
तब तक युवती का पति एक घोड़े पर सवार हो चुका था। उसने आवाज दी-''पूर्णिमा!
लो, जल्दी करो। अब धूप बढ़ रही है।''
पूर्णिमा के सामने घोड़ा आ गया। वह उस पर सवार हो गई। हरीश भी अपने घोड़े पर
सवार हो गया। पूर्णिमा ने हरीश को अपने पति से परिचित कराते हुए कहा-''तुम
तो घबड़ा रहे थे कि जाने कैसी जगह होगी; पर यह महोदय पहले भी चाइना पीक जा
चुके हैं।'' सूखी हँसी के साथ दोनों का परिचय हुआ। मालूम हुआ कि पूर्णिमा
के पति का नाम यादवचन्द्र है।
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