(2)
मैंने दवा मंगा दी। लड़का बड़ी मुस्तैदी से तोते की सेवा और देखभाल करने लगा।
तीन महीने में, धीरे-धीरे, उसके डैनों के घाव अच्छे हो गए। पर अब भी वह उड़
न सकता था। लड़के ने कहा-''अब अच्छा हो गया। खाए-पिएगा, तो पंखों में ताकत
आ जाएगी। तब तो वह जरूर उड़ सकेगा।''
मैंने कहा-''खिलाओ-पिलाओ। शायद तुम्हारा खयाल ठीक हो।'' थोड़े ही दिनों में
तोता काफी मोटा हो गया नए-नए पर भी उसके निकल आए। पर वह उड़ न सकता था उसके
एक डैने की हड्डी बिलकुल कमजोर हो गई थी।
बिल्ली से उसे सुरक्षित रखने के लिए एक पिंजरा बनवा दिया गया। पहले उसे
खांची में ढंक कर ही रखते थे, ताकि दवा लगाने और खिलाने-पिलाने में सुविधा
रहे।
एक दिन सुबह जब हम टहलने चले, तो लड़के ने कहा-''आज मैं तोते को भी सैर
कराने ले चलूंगा।''
मेरे मन में एक शंका उठ खड़ी हुई। मैंने कहा-''नहीं।''
इस पर उसने पूछा-''क्यों?''
मैंने कहा-''जब तुम्हारा हाथ टूटा था, तो चारपाई पर पड़े-पड़े सहन में लड़कों
को खेलते-कूदते देख कर तुम्हारे मन में क्या होता था?'' लड़का मेरी बात
शायद समझ न सका, इसलिए जिद में आकर बोला-''नहीं पिता जी, हम तो जरूर ले
चलेंगे! यह भी क्या मेरी तरह कोई लड़का है!''
मैंने फिर उसे मना न किया। भोले-भाले पंछी भोले-भाले लड़कों की ही तरह होते
हैं, यह बात मैं उसे कैसे समझाता? फिर सोचा, शायद उसी की बात ठीक हो।
बाग में एक बेर के पेड़ पर तोतों का एक झुण्ड किलकारियां भरता बेर कुतर
रहा था। उनकी किलकारियां सुन कर पिंजड़े के तोते ने आंखें उठा-गिरा कर
ऊपर-नीचे देखना शुरू किया। उसकी नजर बेर के पेड़ पर पड़नी थी कि वह जोर से
अपने पंख फड़फड़ाने लगा और चीखने लगा। तोतों ने उसकी आवाज सुनी, तो वे भी
चीखने लगे।
मैंने कहा-''बेटा, पिंजड़ा खोल दे। यह चीखना मुझसे नहीं सहा जाता!''
लड़के को मालूम था कि उसका तोता उड़ नहीं सकता। इसीलिए शायद उसकी बेबसी का
खेल देखने के लिए उसने पिंजड़ा खोल दिया। तोता आधी की तरह पिंजडे से बेर के
पेड़ की ओर उड़ा, पर दूसरे ही क्षण तने से टकरा कर चीखता हुआ जमीन पर गिर
पड़ा। पेड़ के तोते उसकी वह आवाज सुन कर फुर्र से उड़ गए और वह तोता आसमान
की ओर देखता हुआ ऐसे चीख पड़ा, जैसे कड़ी पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए आदमी
मुक्ति की याचना करता है।
लड़का उसे पकड़ने दौड़ा, तो वह चीखता हुआ ही एक झाड़ी में घुस गया लड़का झाड़ी
की ओर बढ़ा, तो मैंने उसे रोकते हुए कहा-''छोड़ दो अब उसे। उसकी यह चीख
मुझसे नहीं सुनी जाती! अब शायद उसकी यह चीख मरते दम तक बन्द न होगी।''
लड़का कुछ समझ रहा था, ऐसा कैसे कहूं; फिर भी, मेरी बात मानकर वह सिर लटकाए
लौट आया।
उस दिन वह बहुत उदास रहा। बार-बार उस तोते के बारे में मुझसे पूछता रहा।
मैंने कहा-मैं यह समझता था, बेटा-इसीलिए तुमसे कहा था कि उसे बाहर न ले
जाओ।''
लड़का चुप रहा और जैसे उसे समझाने के लिए मैं कहता चला गया-''जब तक वह घर
में था, अपनी आसमान की दुनिया, अपनी आजादी, अपना उड़ना भूला हुआ था। उस समय
शायद उसे अपनी बेबसी का भी ज्ञान नहीं था। पर जैसे ही उसने आजाद भाइयों को
देखा, उसे अपनी वे सब बातें याद आ गईं। एक बार उसने फिर अपनी उस जिन्दगी
में जाने की कोशिश की। पर डैनों की बेबसी ने वैसा न करने दिया। उसे अब
अपनी बेबसी का ज्ञान हो गया है। अब उस बेबसी की जिन्दगी से छुटकारा पाना
उसके बस की बात नहीं-वह मर जाना ही बेहतर समझता है। अब वह जिन्दा नहीं रखा
जा सकता बेटे!''
दूसरे दिन हम टहलने गए, तो देखा, वह तोता झाड़ी के किनारे मरा पड़ा था।
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