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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


बेबसी का ज्ञान

भैरव प्रसाद गुप्त


रोज की तरह उस दिन सुबह, अपने सात साल के लड़के का हाथ पकड़े, मैं गांव के बाहर बाग में टहलने निकल गया। पिछली रात खूब वर्षा हुई थी। पत्थर भी गिरे थे। इसलिए हवा बहुत तेज और ठंडी थी। बाग की जमीन रात के गिरे पत्तों, डालों और टहनियों से भर गई थी। पेड़ ऐसे उजड़े से लग रहे थे, जैसे उनकी सारी सूबसूरती ही लुट गई हो। कहीं किसी चिड़िया का भी पता न था। जो बाग सुबह पंछियों के सुहाने चहचहाने से संगीतमय हो उठता था, वह आज ऐसा वीरान और सुनसान पड़ा था कि उसे देख कर डर-सा लगता था।

मैं लड़के का हाथ एक ओर खींचता हुआ दूसरी ओर मुड़ना ही चाहता था कि एकाएक बाग की ओर से जोर-जोर की टें-टें की आवाज आई।

लड़के ने उधर मुड़कर कहा-''पिता जी, कोई तोता रो रहा है!''

सचमुच तोते की उस टें-टें में रोने का स्वर इतना साफ था कि वह छोटा लड़का भी उसे आसानी से समझ गया। आदमी के रोने में जो दर्द होता है, उससे भी अधिक उस तोते की टें-टें में दर्द भरा था।

''पिता जी, चलिए, देखें, वह कहां पड़ा है।''-लड़के ने यह कह कर मेरा हाथ बाग की ओर खींचा।

टें-टें की आवाज और भी जोर पकड़ती जा रही थी। उस आवाज को लक्ष्य करके ही हम उस दिशा की ओर बढ़े। एकाएक लड़के ने चिल्ला कर कहा-''पिता जी, वह देखिए-उस पेड़ की जड़ में।'' मैंने देखा, तोता चित पड़ा पंख फड़फड़ा रहा था और टें-टें करके चीख रहा था। उस हालत में उसे देख कर मन दुख और दर्द से भर गया। लड़का उसे पकड़ने दौड़ पड़ा।

चिड़ियों को न जाने क्यों, बच्चे बहुत चाहते हैं। मेरा लड़का भी इसी भाव से उसे पकड़ने गया या कुछ और सोच कर, यह मैं उस समय नहीं समझ सका-इसीलिए मैंने उसे रोका भी नहीं।

तोता बुरी तरह घायल था। लड़के को अपनी ओर लपकते देखकर बड़ी ही बेचैनी और बेबसी से उसने उसकी ओर देखा, फिर टें-टें करके चीखते हुए उड़ने के कई असफल जतन किए; पर जरा भी इधर से उधर न हो सका। लड़के ने उसे पकड़ लिया, तो वह और भी जोर से चीख उठा, जैसे उसके प्राण ही निकल रहे हों। उसकी वह चीख इतनी दर्द भरी थी कि मैंने अपने कानों पर हाथ रख लिए।

लड़के ने उसके खून से लथपथ डैने को मेरी ओर करते हुए कहा-''पिता जी, इसके दोनों डैने टूट गए हैं। हम घर ले जाकर इसकी दवा करेंगे। यह अच्छा हो जाएगा न?''

पन्द्रह दिन पहले वह खुद अपना हाथ तोड़ चुका था। दवा से उसका हाथ अच्छा हो गया था। शायद यही बात उस समय उसके दिमाग में थी। यों भी, उसका यह विचार मुझे अच्छा लगा। मैं इनकार न कर सका।

वह उसके शरीर पर धीरे-धीरे हाथ सहलाने लगा, तो थोड़ी देर में उसका चीखना-चिल्लाना बन्द हो गया। उसने पास ही के गढ़े से हाथ में पानी लेकर उसकी चोंच में बूंद-बूंद टपकाया और उसके पंखों का खून भी धीरे-धीरे धो डाला।  

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