स्टेशन पहुंच कर मैंने बच्चे को एक बेंच पर बिठा दिया और खुद लौटने की
तैयारी करने लगा, क्योंकि गाड़ी आने में अभी देर थी। मगर बच्चे की दशा
देखकर मेरे कदम न उठ सके मैंने, उसे कुछ खाने को ले दिया, जिस पर वह इस
तरह झपटा, जैसे कुत्ता सूखी हड्डी पर झपटता है मैं उसके पास ही बेंच पर
बैठ गया और उसकी पीठ सहलाने लगा।
धीरे-धीरे मेरे मन में कौतूहल जागा। देखूं तो, इस बोझिल फाइल में क्या है।
गाड़ी आने में अभी तक देर थी, सो समय काटने को मैंने उसकी फाइल खोली।
वर्षों पहले की चिट्ठियां वहां पर अटकी पड़ी थीं। चिट्ठियां क्या थीं,
अर्जियां थीं। कहीं चेतावनी, कहीं शिकायतें। देशनिकाले का नोटिस भी वहां
लगा था। एक याचना-भरी दरख्वास्त बेटी को अस्पताल में दाखिल कराने के बारे
में भी थी। चिट्ठियां पढ़ता-पढ़ता, थे दस-बारह वर्ष पहले की चिट्ठियां उलटने
लगा। अब जगह-जगह पर नए-नए नाम मेरी नजरों से गुजरने लगे-चम्पा, सावित्री,
वीरांवाली, वेदपाल! मेरे जी में यह जानने की उत्सुक्सा पैदा हुई कि ये सब
कौन हैं और कहां हैं? मगर उस छोटे बच्चे से वर्षों पहले की बातें पूछना
बेकार था।
गाड़ी आई। एक डिब्बे के दरवाजे पर खड़ी वह लम्बे कद की औरत हाथ हिला-हिला कर
मुझे बुला रही थी। उसने मुझे पहले ही देख लिया था। मैंने आगे बढ़ कर जल्दी
से लड़का उसके हवाले कर दिया। बेटा मां की टांगों के साथ चिपट कर फूट-फूटकर
रोने लगा। मां ने क्षण भर को उसकी पीठ थपथपाई, फिर उसे उठाकर ऊपर वाली सीट
पर बिठा दिया और मुझसे अपना सामान लेने लगी। सब चीजें देकर फाइल उसके
हवाले करते हुए मुझसे न रहा गया। मैंने पूछ ही लिया-''सावित्री, वीरावाली,
चम्पा, वेदपाल-ये सब कौन हैं? कहां हैं?'
'
उसने एकटक मेरे मुंह की तरफ देखा और फिर एक अनूठे ढंग से कहा, जैसे वह
मुझसे नहीं, बल्कि अपने आपसे बातें कर रही हो-''मेरे सात बच्चे थे, वीर
जी! पांच को तो मैं खा चुकी हूं, मगर इस सबसे छोटे को तो मैं आच नहीं आने
दूंगी। मैं बर्तन मांज लूंगी, मगर इसे छाती से लगाए रखूंगी!''
यह सब कहती-कहती वह सीट की ओर लौट गई और बड़ी देर तक अपने बेटे का मुंह
चूमती रही। मेरी आंखें, जो गाड़ी के आने पर उसकी बीमार बेटी को खोज रही
थीं, अब उस औरत के चेहरे को देखने लगीं। थोड़ी देर बाद आंखें पोंछती हुई वह
वापस आई और उसी स्वगत अन्दाज से, अत्यन्त व्याकुल स्वर में, बोली-''ओह,
इसकी भी सांस फूलती है। मैं कहां जाऊं? हे मेरे परमात्मा!''
मगर उसी समय गाड़ी ने दूसरी सीटी दी और वह औरत अकेली एक वीरान शहर से दूसरे
वीरान शहर की ओर चल दी!
...Prev | Next...