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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


इसके बाद अनेक लोगों ने अनेक प्रश्न किए। किसी ने अपनी पत्नी का हाल पूछा, तो उसके बारे में बताया गया कि उसे अब स्मरण नहीं है कि पृथ्वी पर किसी से विवाह हुआ था भी कि नहीं। उसने बताया कि मृत्युलोक से यहां आने पर शराब तुरन्त पिलाई जाती है। उसका हरा रंग होता है। स्वाद में वह मीठी होती है। यह सबको पीनी पड़ती है-चाहे हिन्दू हो या मुसलमान, जैन हो या बौद्ध, ईसाई हो या मूसाई, आर्यसमाजी हो या वाममार्गी। उसके बाद कुछ याद नहीं रहता, कि हम कहां थे या नहीं थे। कुछ और प्रश्न के पश्चात कार्य समाप्त हुआ। कोटि भास्करन ने जनता को धन्यवाद दिया और कहा-''मैं आज संध्या को मैसूर चला जाऊंगा। यदि कोई विशेष रूप से मिलना चाहे, तो जहां मैं ठहरा हूं, वहां मिल सकता है।''
वशिष्ठ लौट कर हम लोगों के पास आ गए। मेरा मन आश्चर्य से उसी प्रकार भर गया था, जैसे नेताओं की गर्दन स्वागत में गजरों से भर जाती है। पर वे चित्र के समान चुप थे। अनिरुद्ध से न रहा गया। उन्होंने कहा-''कहो भाई, तुम तो विश्वास ही नहीं करते थे। तुम्हें उसने कैसे 'हिप्नोटाइज' कर दिया!''
वशिष्ठ मुस्कराए। बोले-''यह सब उस मंत्र की करामात थी, जो उसने पुरजे में लिखकर दिया था।''
मैंने कहा-''अच्छा, तब तो वह विचित्र और बहुत ही उपयोगी मंत्र रहा होगा। तुम याद कर लेते, तो बहुत अच्छा होता।''
वशिष्ठ ने कहा-''मैंने याद कर लिया है।''

मैंने कहा-''यह तो तुमने करामात की। हम लोगों को भी बेहोश करना। हम लोग भी दूसरे लोकों से बातचीत कर सकेंगे।''
वशिष्ठ ने कहा-''मन्त्र बहुत सरल है। अभी बता सकता हूं।''
अनिरुद्ध ने पूछा-''क्या है?''
वशिष्ठ ने कहा ''उसने कागज पर लिख कर दिया था कि ''हमारी इज्जत और रोटी का सवाल है। आप भले आदमी हैं। ऐसा न कीजिए कि मेरा अपमान हो।''

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