कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
|
|
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
पचासों हाथ उठ गए। कोटि भास्करन ने कहा-''यह मैं जानता हूं कि आप सभी
स्वर्ग का परिचय प्राप्त करने को उत्सुक हैं। बात ही ऐसी है। पहले से
परिचय प्राप्त कर लेने के पश्चात आप को जब वहां जाने का सौभाग्य होगा, तो
कितनी सुविधा होगी! परन्तु आप यह भी जानते हैं कि समय हमारे पास कितना है?
आपके जिन महानुभाव की आत्मा इस समय स्वर्ग पहुंची हुई है, उन्हें भी इस
अवस्था में अधिक देर तक नहीं रखा जा सकता। एक बार ऐसा हुआ कि कुछ देर तक
आत्मा स्वर्ग में विचरती रही। उसका मन वहां ऐसा लगा कि वह वापस आना ही
नहीं चाहती थी। बड़ी कठिनाई से उसे वापस बुला सका। यदि कहीं इन साहब का भी
वही हाल हुआ, तब क्या होगा? शायद आप ऐसा न चाहते होंगे। यद्यपि स्वर्ग
सुन्दर स्थान है, फिर भी आप यह न चाहेंगे कि ये अभी से वहां के नागरिक बन
जाएं। आप लोगों में से सिर्फ पांच व्यक्ति प्रश्न पूछें।''
एक सज्जन तुरन्त उठ खड़े हुए और बोले ''यह बताने की कृपा करें कि मेरे
ससुर स्वर्ग में हैं कि नरक में? उन्होंने जितना दहेज देने का वादा किया
था, उतना नहीं दिया।''
कोटि भास्करन ने कहा-''आप लोग इस कार्य को हँसी न बनाएं। यह बहुत गम्भीर
काम है।''
वह सज्जन बोले-''मैं बिलकुल हँसी नहीं कर रहा हूं। मैं यह जानना चाहता हूं
कि वादा तोड़ने का दंड मिलता है कि नहीं।''
कोटि भास्करन ने उक्त सज्जन से उनके ससुर का नाम पूछा और तब वशिष्ठ
से कहा-''मुरादाबाद निवासी सेठ पेड़ामल इस समय स्वर्ग में हैं
कि नरक में?''
जनता बड़ी उत्सुकता से उत्तर की प्रतीक्षा करने लगी। एक मिनट के बाद उत्तर
मिला-''सेठ पेड़ामल पहले नरक में आए। जिस दिन आए, उसी दिन से यमराज का पांव
दबाना आरम्भ किया। उनकी देह भी दबाने लगे। ऐसा आज तक किसी ने नहीं किया
था। चार घंटे के बाद वे स्वर्ग भेज दिए गए। अब वे यमराज के शरीर पर मालिश
करते हैं और इस समय बहुत आनन्द से जीवन बिता रहे हैं। वे यम की पत्नी
धूमोर्णा के प्रसाधन का सामान प्रति दिन एकत्र करते हैं। उन्हीं की
सिफारिश से वे स्वर्ग का सुख भोग रहे हैं।''
|