वशिष्ठ जोश में आ गए। बोले-''अच्छा, मैं चलूंगा। कहूंगा-'मुझे बेहोश
कीजिए'। देखूंगा उनका हिप्नोटिज्म।''
तै हुआ। छ: बजे संध्या से सभा थी। पांच बजे से ही वशिष्ठ तैयार होने लगे
और साढ़े-पांच बजे ये लोग जाकर सबसे आगे बैठ गए, जैसे आजकल महंगी के दिनों
में किसी दावत का निमन्त्रण पाकर भूखा परिवार आसन जमा लेता है। छ: बजे के
लगभग हाल भर गया। परलोक के प्रति इतनी आस्था लोगों को है, वह उसी दिन जान
पड़ा। भारत की विशेषता है कि इस लोक की ओर कम ध्यान रहता है-मृत्यु के
पश्चात, जिस लोक में मनुष्य जाने वाला होता है, उसी की ओर अधिक आकर्षण
रहता है। कोटि भास्करन महोदय ठीक समय से पधारे। कुरता-धोती के
ऊपर आपने लाल मखमल का बिना बटन का लम्बा ओवरकोट पहन रखा था। ओवरकोट के ऊपर
पचास-साठ पदक टंके हुए थे, जैसे रक्त में कार्पसल (रक्ताणु) टहल रहे हों।
आपके सामने, मंच पर, एक लम्बी मेज रखी थी। उस पर साफ नीले रंग की चादर
बिछी थी। आपने मेज के सामने खड़े होकर दर्शकों को नमस्कार किया और
कहा-''देवियों और सज्जनो, आपने कल मेरा योग देखा। भगवान की कृपा है, मैंने
दूसरे जगत से सम्पर्क स्थापित कर लिया है। राकेट अथवा स्पुतनिक
से चांद और मंगल ग्रहों पर भौतिक विज्ञानवादी भले ही पहुंच
जाएं, किन्तु आत्मा के संसार में उनका पहुंचना असम्भव है। वे आप को स्वर्ग
की झांकी नहीं दिखला सकते। यद्यपि अभी एक-एक व्यक्ति ही स्वर्ग के दर्शन
कर सकता है, पर मैं वह समय लाऊंगा, जब आपमें से प्रत्येक व्यक्ति अपनी
आंखों से स्वर्ग देखेगा-अपने मृत सम्बन्धियों से भेंट करेगा।
पृथ्वी तथा स्वर्ग की दूरी न रह जाएगी। आज इस समय जो चाहे, जिसकी इच्छा
हो, यहां आ जाए। मैं उसे 'हिप्नोटाइज़' करूंगा। पहले उसे अचेतन अवस्था में
ले जाऊंगा और तब, जहां कहिएगा, उसे ले जाऊंगा। आप में से जो भी चाहें,
वहां का हाल पूछ लीजिएगा।''
उनके भाषण में सत्य का उतना ही बल जान पड़ता था, जितना सेना के कूच करने के
पहले सेनापति के भाषण में होता है। दो-तीन मिनट तक हाल में शान्ति रही।
इसके पश्चात पीछे की कुरसी से एक सज्जन उठे और आगे की कुरसी से वशिष्ठ
उठे। जब तक पीछे वाले सज्जन मंच तक पहुंचे, वशिष्ठ मेज के पास पहुंच गए।
कोटि भास्करन ने कहा-''आपको स्वर्ग में विश्वास है? जिसे विश्वास न होगा,
वह बेहोश नहीं हो सकता।''
वशिष्ठ ने कहा-''मुझे पूरा विश्वास है। मैं स्वर्ग देख कर अपना विश्वास और
पक्का करना चाहता हूं।''
कोटि भास्करन ने उन्हें मेज पर लिटा दिया और एक कागज पर कुछ लिखकर दिया कि
इस मन्त्र को पांच बार पढ़ लीजिए मन में। वशिष्ठ जब मन्त्र पढ़ चुके, तब
भास्करन ने उनके ऊपर हाथ घुमाना आरम्भ कर दिया। पांच-सात मिनट तक वह हाथ
घुमाते रहे। इसके बाद पूछा-''कहिए आप कहां हैं?''
कोई जवाब नहीं।
भास्करन ने पुन: कहा-''देखिए मैं पूछ रहा हूं कि आप इस समय कहां हैं?''
वशिष्ठ ने धीमे स्वर में कहा-''अन्धकार, घोर अन्धकार!''
जनता की उत्सुकता बढ़ गई। प्राय: सभी लोग जानते थे कि वशिष्ठ अमुक कालेज
में प्राध्यापक हैं। उनके चरित्र से भी सभी अभिज्ञ थे। उन्हें बेहोश देखकर
सब लोगों की उत्सुकता बेहद बढ़ गई।
कोटि भास्करन ने दो मिनट बाद पूछा-''अब क्या देख रहे हैं आप?'' एक क्षण के
पश्चात धीमे-धीमे स्वर में वशिष्ठ बोले-''आप मुझे कष्ट न दीजिए। वाह! वाह!
ऐसा प्रकाश मानो सोने में किसी ने दूध मिला दिया। यह शीतलता-कौन लोक है,
कौन देश है? चला जा रहा हूं। सड़क डनलपिलो से भी कोमल किसी वस्तु की बनी
है। मेरे आगे एक फाटक है-बहुत विशाल, हरा-हरा! पन्ने का बना मालूम
होता है। उसके ऊपर इंद्रधनुषी अक्षरों में लिखा है-'स्वर्ग, प्रथम लोक!'
इसी में प्रवेश कर रहा हूं।''
कोटि भास्करन ने कहा-''अब इन महानुभाव की आत्मा ने स्वर्ग में प्रवेश किया
है। मैं तो आपको जानता भी नहीं। नाम भी नहीं जानता। आप लोग यदि कोई प्रश्न
पूछना चाहते हैं, अथवा किसी की आत्मा से कुछ जानना चाहते हैं, तो कृपया
पूछें।''
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