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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


अनिरुद्ध ने प्याला एक हाथ में उठा लिया और कहा-''कल जो कुछ मैंने देखा वह मेरी समझ में आया ही नहीं। वह इतना आश्चर्यजनक था, कौतूहलपूर्ण था, बुद्धि को चकरा देने वाला था कि कहते नहीं बनता। भास्करन ने कुछ प्रयोग दिखाए। आदमी बेहोश करते और उससे बातें पूछते मैंने अनेक खेल देखे हैं, पर भास्करन ने तो कमाल कर दिया। उन्होंने कहा कि उपस्थित जनता में से कोई आ जाए। मैं उसे बेहोश कर दूंगा और उसकी आत्मा से आप जो चाहें, पूछ सकते हैं।''
''अरे, हम जानते हैं। सब मिले होते हैं। लोगों के बीच बैठे रहते हैं।-जान पड़ता है, दर्शकों में हैं।''-वशिष्ठ बोले।
''अजी साहब, यह बात हो ही नहीं सकती। किचलू साहब जो कलक्टर हैं न, उनकी साली को उसने बेहोश कर दिया। उनके मिले रहने की बात ही नहीं हो सकती। बेहोश करने के बाद लोगों ने कितने ही प्रश्न पूछे और उस लड़की ने ऐसे उत्तर दिए कि लोगों को दांतों-तले उंगली दबानी पड़ी। और, दर्शकों में आप क्या समझते हैं, भेड़-बकरियां थीं? नगर के बुद्धिमानों का समूह वहां एकत्र था। अफसर तो थे ही, वकील भी थे। अध्यापक, लेक्चरर, डॉक्टर और व्यापारी सभी तबकों के लोग वहां थे।''
वशिष्ठ ने कहा-''आजकल सरकारी कर्मचारी तथा अधिकारी पूजा-पाठ में बहुत विश्वास करने लगे हैं। नौ बजे दिन तक बाथरूम में रहते हैं और ग्यारह बजे तक पूजा पर। कभी सवेरे जाकर देख लीजिए। उनका विश्वास भी योगी-यति, सन्त-संन्यासी, भूत-प्रेत, मन्त्र-तन्त्र में बढ़ गया  है। राज्य धर्म-निरपेक्ष होते ही सारा धर्म घूम कर इन लोगों के हृदय में आ गया है। और, यह एक तरह से अच्छा ही हुआ। राज्य से धर्म निकल ही गया। यह लोग भी न अपना लेते, तो  फिर वह लुप्त ही हो जाता।''
मैंने कहा-''तुम कृपा कर सुन तो लो।''
अनिरुद्ध ने आगे कहा-''बड़े-बड़े मूर्ख होते हैं! किसी ने पूछा-'तुलसीदास से भेंट कर सकती हैं आप?' उस लड़की ने दो मिनट के बाद कहा-'हां, मैं ठीक उनके समक्ष हूं। आज उनके मकान के चारों ओर कुछ लोग हड़ताल कर रहे हैं। संस्कृत के विद्यार्थी हैं। तुलसीदास ने  रामचरितमानस में उनकी उपमा दादुर से दे दी है। सभी इससे बहुत नाराज हैं। वे मना रहे हैं। इस समय उनसे बात नहीं हो सकती।''

वशिष्ठ ने कहा-''यह सब गप्प है। किसी को इस पर विश्वास हो सकता है?''
'फिर भास्करन ने कहा-''कल का समय हम देते हैं। जो चाहे आए, हम उसे बेहोश करेंगे।''

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