लोगों की राय

कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

Like this Hindi book 0

स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


फिर वह सूबेदार साहब से बातें करने लगा। वे अंग्रेजों के भक्त थे। उसे बता रहे थे कि अंग्रेज बहादुर कौम है, लेकिन उसका कहना था कि जर्मनी वाले ज्यादा बहादुर हैं। वे अच्छे कारीगर भी हैं। वह उनके इस्पात पर मुग्ध था और उसकी अपनी धारणा थी कि लोहे का सामान जर्मनी वालों से अच्छा कोई नहीं बना सकता है। मजाक में वह कहता था कि विलायत वाले तो बस, टीन का सामान बना कर बेच सकते हैं।

मैं होली के बाद भी लगातार उससे मिलता रहा और वह मुझे कई बातें बताता रहा। उसका कहना था कि राजदरबारों में कलाकारों की इज्जत होती थी और उनको प्रोत्साहन मिलता था। यही कारण था कि उस समय कारीगरों का ध्यान वस्तुओं के निर्माण की ओर अधिक था। फिर उसने बताया कि एक बार उसने एक बन्दूक बनाने की चेष्टा की थी और उसको इसमें सफलता भी मिल गई थी; पर उसे बताया गया कि यह काम गैर-कानूनी है। इसलिए वह चुप हो गया और कभी इस पर नहीं सोचा। उसने कहा कि किसी मशीन को छूते ही, यदि कारीगर चैतन्य है, तो वह उसका ढांचा समझ जाएगा और फिर उसके दिमाग पर उसकी छाप पड़ेगी। उस पर कुछ विचार करने के बाद वह ढांचा पकड़ में आ जाएगा। इसके बाद उसके लिए वस्तु का  निर्माण करना आसान हो जाता है। इस बात की सचाई को साबित करने के लिए उसने हमें ग्रामोफोन की एक सूई बना कर दी थी। सच ही, वह सूई मजबूत थी और उससे हमने सैकड़ों रिकार्ड बजाए थे। उसके लड़के ने बताया था कि लगभग बीस रोज की मेहनत के बाद वह उक्त सूई बना पाया था।

जोगा से मेरी अन्तिम मुलाकात सन् 1929 ईस्वी में हुई। मेरा एक साथी मैदान से आकर हमारे परिवार मे टिका हुआ था। उसने चुपके से एक दिन मुझसे पूछा कि यहां कोई पुराना लोहार-परिवार तो नहीं है। उसकी बात को सुनते ही मुझे जोगा की याद आई और मैं उसे लेकर उसकी दुकान पर पहुंचा। उस समय उसकी सेहत अच्छी नहीं थी और वह चारपाई पर लेटा हुआ था। मैंने जोगा को अपने मित्र का परिचय दिया, तो वह बहुत खुश हुआ। उसके बाद मेरा दोस्त लगातार जोगा के यहां जाया करता। मुझे उसने बताया था कि वह भारत के पुराने कला-कौशल पर एक किताब लिख रहा है और उसमें ऐसे कारीगरों का एक बड़ा हाथ रहेगा। इनमें से हर एक अपने पेशे के इतिहास की जीवित डायरी है। दोस्त कुछ दिन वहां रह कर चला गया। जाते समय वह मुझसे कह गया कि जोगा की पूरी हिफाजत की जानी चाहिए। उसने आश्वासन दिया कि वह कुछ रुपये भेजेगा। उसने यह भी बताया कि हमारे देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे कारीगरों को आज पेट भर खाना नहीं मिल पाता है। उस कस्बे को छोड़े हुए लगभग बीस साल हो चुके है। सामन्तवादी परिवारों का ढांचा टूट जाने के कारण हमारा परिवार उस कस्बे से निकल आया। पिता जी ने पेन्शन के बाद दूसरे शहर में मकान बना कर वहीं रहने का निश्चय कर लिया था। हम लोग उन पुरानी बातों को भूल गए। फिर इधर जमाना भी तो तेजी से बदल गया है।

कल मेरा वह पुराना मित्र एकाएक आ पहुंचा। वह आजकल एक बड़े सरकारी ओहदे पर है।  हम लगभग बीस साल के बाद मिले थे। उसने पहला सवाल किया कि जोगा के परिवार का  क्या हाल है? जोगा का परिवार! मैं क्या बचपन की सब बातों की गठरी संवार कर रखता हूँ लेकिन वह तो बोला ही कि पिछली बार जब वह हमारे परिवार में टिका था, तो उसको  क्रान्तिकारी पार्टी ने देशी पिस्तौल बनवाने का काम सौंपा था। इसी सिलसिले में वह मुझसे भी मिला था। यह सुन कर सच ही मुझे आश्चर्य हुआ था कि जोगा देशी पिस्तौल बनाने में सफल हुआ था।
जोगा के लिए श्रद्धा से मेरा माथा झुक गया। शायद उसका परिवार आज अपना पेशा छोड़ कर कोई और रोजगार कर रहा होगा। नए जमाने के साथ नए आविष्कार हुए हैं-उनकी प्रगति में, जोगा सरीखे कारीगरों का ही सबल सहयोग रहा है, जो कि अपने पेशे की प्रगति की ओर सदैव सचेत रह कर मानव की भलाई की बात सोचा करते थे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book