कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
रुपया चला गया था, पर बिगड़ी हुई आदतें बची रह गई थीं। शराब का चस्का नहीं
छूट पाता था और जुए की इल्लत घटने की बजाए और बढ़ गई थी। रुपया न रहने पर
किसी भी हताश आदमी के लिए जुआ यों भी एक बहुत बड़ा आकर्षण बन जाता है-फिर,
जिसे पहले से ही आदत पड़ी हुई हो, उसे तो उस हालत में जुए के
पीछे अपना सर्वस्व गंवा कर भी संतोष नहीं हो सकता। फल यह हुआ कि एक-एक
करके रुक्मा के गहने गायब होते चले गए। दोनों नौकरानियां अलग कर दी गईं।
सिनेमा और थियेटर जाना तो बन्द हुआ ही, कमरे से बाहर निकल पाना भी रुक्मा
के लिए दुश्वार हो गया। पहले उसी मकान के ऊपर जो अच्छे और हवादार कमरे
कमलापति ने किराए पर ले रखे थे, उनका किराया ज्यादा रहने के कारण सबसे
नीचे के तल्ले में सील और बदबू से भरा एक कमरा, जो संयोग से खाली ही पड़ा
था, सस्ते किराये पर ले लिया। रुपये-पैसे की तंगी के कारण कमला-पति के
स्वभाव में भी बहुत बड़ा अन्तर आ गया। केवल उसके मिजाज में ही चिड़चिड़ापन
नहीं आया, बल्कि वह शक्की भी हो गया। बात-बात में वह रुक्मा के चरित्र के
सम्बन्ध में सन्देह प्रकट करने लगा। दिन में अपने निपट अकेलेपन से उकताकर
वह कभी-कभी उसी मकान में ऊपर के तल्ले के अपने पुराने पड़ोसियों
के यहां स्त्रियों के साथ बैठने चली जाती थी। दो परिवारों से उसकी विशेष
घनिष्ठता थी, जिनमें एक बंगाली था और दूसरा पंजाबी। बंगाली से
भी अधिक पंजाबी परिवार से उसका हेल-मेल था। वह न तो बंगला ही ठीक से समझ
पाती थी, न बंगाली हिन्दी। पंजाबी परिवार की स्त्रियों को वह
अपने अधिक निकट पाती थी। एक दिन कमलापति दफ्तर से कुछ जल्दी चला
आया। रुक्मा को ढूंढ़ने पर पता चला कि वह ऊपर के तल्ले में पंजाबियों के
कमरे में है। जब रुक्मा नीचे आई, तब उसने उसे बुरी तरह डांटना और बुरा-भला
कहना आरम्भ कर दिया। क्रोध से कांपता हुआ वह बोला-''मैं जानता हूं कि ऊपर
जो एक पंजाबी छोकरा रहता है, वह जवान है और मुझसे ज्यादा
खूबसूरत है। इसी लिए उस पर तुम्हारी नजर गड़ी हुई है। यह न समझना कि मैं
अन्धा हूं। तुम दोनों को एक दिन वह मजा चखाऊंगा...'' आदि-आदि।
पहले तो रुक्मा कुछ समझ ही न पाई। पर दूसरे ही क्षण उसकी बात के भीतर छिपा
हुआ एक अस्पष्ट संकेत उसके आगे धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगा। वह थर-थर
कांपती हुई मूढ़ दृष्टि से उसकी ओर देखती रह गई। उसकी ओर देखते
हुए पहली बार उसे लगा कि वह इधर सचमुच पहले से बहुत कुरूप हो
गया है। कमलापति की हिंस्र आंखों के इर्द-गिर्द, उसके कपाल में और गालों
पर जो टेढ़ी-मेढ़ी झुर्रियां इधर कुछ समय में पड़ गई थीं, वे इस समय और
अधिक विकट और भयंकर दिखाई देने लगीं। देख कर वह इस कदर डर गई कि
उसके मुंह से अपनी सफाई
में एक भी शब्द नहीं निकल पाया। उसने चुपचाप उसकी ओर से पीठ फेर ली और
अंगीठी में कोयले डाल कर चाय का पानी चढ़ाने की तैयारी करने लगी।
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