कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
राजीव पिता का आदर करता था। वह चुपचाप सुनता रहा। पिता की वाणी में स्नेह
था, पीड़ा थी, उसमें अनुभव था। लेकिन जितने ही अधिक ध्यान से और
विनय से पिता की बात को उसने सुना, उसके मन से अपने सपने दूर
नहीं हुए। अनुभव अतीत से सम्बन्ध रखता है। वह जैसे उसके लिए था ही नहीं।
वह जानता था कि कमाई का चक्कर आने वाले कुछ वर्षों में खत्म हो
जाने वाला है। यह बुर्जुआ समाज आगे रहने वाला नहीं है। समाजवादी समाज होगा
जहां अपने अस्तित्व की भाषा में सोचने की आवश्यकता ही नहीं रह जाएगी। आप
सामाजिक होंगे और समाज स्वत: आपका वहन करेगा। आपका योग-क्षेम आपकी अपनी
चिन्ता का विषय न होगा। राजीव पिता की बात सुनते हुए भी देख रहा
था कि धनोपार्जन जिनका चिन्तन-सर्वस्व है ऐसा वर्ग क्रमश:
मान्यता से गिरता जा रहा है। कल करोड़ों में जो खेलता था आज चार
सौ रुपए पानेवाले मजिस्ट्रेट के हाथों जेल भेज दिया जाता है। वह वर्ग शोषक
है, असामाजिक है। इसके अस्तित्व का आधार है कम दो, ज्यादा लो। हर किसी के
काम आओ, इस शर्त के साथ कि अधिक उससे अपना काम निकाल लो। यह
सिद्धांत सभ्यता का नहीं है, स्वार्थ का है, पाप का है। इस पर
पलने-पुसनेवाले वर्ग को समाज कब तक सहता रह सकता है? असल में यह
धुन है जो समाज के शरीर को खा कर उसे खोखला करता रहता है। उस
वर्ग की खुद की सफलता समाज के व्यापक हित को कीमत में देने पर होती है। यह
ढोंग अब ज्यादा नहीं चल सकता। इस वर्ग को मिटाना होगा और फिर समाज वह होगा
जहां हर कोई अपना हित निछावर करेगा, फुलाए और फैलाएगा नहीं। स्थापित
स्वार्थ, संयुक्त परिवार का, वर्ग का, जाति का, सब लप्त हो
जाएगा। स्वार्थ एक होगा और वह परमार्थ होगा। हित एक होगा और वह
सबका हित होगा।
पिता की बात सुन रहा था और राजीव का मन इन विचारों के लोक में रमा हुआ था।
पिता की बात पूरी हुई तो सहसा वह कुछ समझा नहीं, कुछ देर चुप ही बना रह
गया। कारण, बात की संगति उसे नहीं मिल रही थी।
पिता ने अनुभव किया कि बेटा वहां नहीं कहीं और है। उन्हें सहानुभूति हुई
और वह भी चुप रहे। राजीव ने उस चुप्पी का असमंजस अनुभव किया। हठात
बोला-''तो आप मानते हैं; कुपात्र कई पास धन नहीं होगा। फिर इंजील में यह
क्यों है कि कुछ भी हो जाए धनिक का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं हो
सकता। उससे तो साबित होता है कि धन कुपात्र के पास ही हो सकता है।''
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