कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
'पर चिता जलने के साथ ही, प्यारेलाल अपना मानसिक सन्तुलन एकाएक खो बैठा।
बात यह हुई कि प्यारेलाल ने ज्यों ही चिता को आग दी, चिता का फूंस तीव्रता
से सुलग उठा। इस जलते फूंस में से प्यारेलाल की पत्नी का शरीर स्पष्टत:
दिखाई दे रहा था। आग की गरमी और दोनों ओर की लकड़ियों के बोझ से हाव में
एकाएक गति दिखाई दी, जैसे प्यारेलाल की पत्नी सरदी की जकड़ से छुटकारा पा
कर मजे में अपने पांव पसार रही हो। प्यारेलाल पास ही खड़ा था। उसका कहना था
कि उसने खुद अपनी आंखों से अपनी पत्नी को मुसकराते देखा है, अपने कानों से
उसकी पुकार सुनी है।
''यह सब काम एक क्षण में हुआ और एकाएक प्यारेलाल चीख उठा-'बचाओ! बचाओ!
मेरी घर वाली को बचाओ! वह सरदी से बचना चाहती थी, आग से जलना नहीं!'
प्यारेलाल चीखा-चिल्लाया, चिता की आग बुझाने को वह आगे भी बढ़ा। मगर साथ
के लोगों ने उसे कुछ भी न करने दिया। देखते-ही-देखते चिता धधक कर जलने लगी
और उधर प्यारेलाल जोर-जोर से रोने लगा। उसकी आंखों से देखी मुसकराहट और
कानों से सुनी पुकार पर किसी ने विश्वास ही नहीं किया।
''बड़ी कठिनाई से मैं प्यारेलाल को चुप करा पाया। परन्तु आज भी उसका पूर्ण
विश्वास है कि सरदी की लम्बी जकड़ से छुटकारा पाकर चिता में उसकी पत्नी ने
अंगड़ाई जरूर ली थी, होश में आकर वह स्पष्टत: मुसकराई थी और साफ आवाज में
उसने प्यारेलाल को पुकारा भी था। अब प्यारेलाल अधिक नहीं बोलता, फिर भी
कभी-कभी कराहपूर्ण स्वर में एकाएक चिल्ला उठता है -'सरदी! सरदी!! जैसे, वह
कोई दुःस्वप्न देख रहा हो!
''सबसे अजीब बात यह है कि पुलाव-सम्बन्धी एक भी बात अब उसे याद नहीं है।
उसकी समझ में तो यह भी नहीं आता कि लोग उसे 'पुलाव वाला' कह कर क्यों
बुलाते हैं।''
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