कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
'नवम्बर के अन्त में प्यारेलाल की पत्नी एक बच्चे की मां बनी। मां और
बच्चा, दोनों बहुत कमजोर थे। प्यारेलाल में अपनी पत्नी को पूरा भोजन देने
की भी सामर्थ्य नहीं थी, वह उसका इलाज कहां से करवाता? उसकी पत्नी अपने
नवजात शिशु को यथेष्ट दूध भी न दे पाई। सप्ताह-भर के भीतर ही शिशु का
देहान्त हो गया।
'अपने भीतर की कमजोरी और बीमारी, अपर्याप्त भोजन और उस पर सन्तान-वियोग की
जलन। प्यारेलाल की पत्नी की दशा बहुत दयनीय हो गई। गरीब प्यारेलाल से
जो-कुछ बन पड़ता, वह करता रहा। मगर सच बात तो वह है कि आज की दुनिया में
जो-कुछ करता है, वह रुपया करता है-इनसान कुछ नहीं करता। इसलिए प्यारेलाल
चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता था।
'फिर इस साल सरदी भी तो बहुत पड़ रही है, सक्सेना। एक तो यह सरदी गरीबी मे
सताती है दूसरी बीमारी में। और प्यारेलाल की पत्नी गरीब और बीमार, दोनों
ही थी। घर की पुरानी चटाई, चीथड़ानुमा कम्बल, लोग्गड़नुमा रजाई, सब उसने
अपनी घरवाली को दे दिए। फिर भी, वह बेचारी सरदी में दांत बजाती रहती थी।
जब कभी प्यारेलाल उसका हाल पूछता, वह बड़ी करुणा से कहती-'सरदी! सरदी!!
मुझे सरदी लग रही है!!!'
''और, 23 दिसम्बर के प्रातःकाल, जिस दिन सूर्य उत्तरायण होना आरम्भ करता
है, जिस दिन भीष्म पितामह ने स्वेच्छापूर्वक पुराने चीथड़ों के समान अपने
शरीर का विसर्जन किया था, उस दिन शायद कड़कड़ाते जाड़े के कारण ही प्यारेलाल
की पत्नी का देहान्त हो गया। वह बेचारी सरदी से इतना सिकुड़ गई थी कि उसकी
देह को सीधा भी नहीं किया जा सका। उस दिन सरदी और भी अधिक थी। बीच-बीच में
बूंदा-बांदी भी हो रही थी। गिने-चुने पांच-सात पड़ोसी उसकी देह को स्मशान
में ले गए।
'पत्नी के देहान्त के बाद भी सभी आवश्यक कार्य प्यारेलाल पूरे होश-हवास
में करता रहा था। पत्नी के शव को उसी ने नहलाया, उसी ने उसके कपड़े बदले और
उसी ने सधवा की मांग में सिन्दूर भरा। लोगों के मना करने पर भी सारी रात
प्यारेलाल अपनी पत्नी की अन्तिम यात्रा में लगातार कन्धा दिए रहा। चिता को
अग्नि भी उसी ने दी।
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