कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
घड़ी ने साढ़े छ: बजे की एक टन बजाई। सुशीला ने चादर से मुंह बाहर निकाला और सोचा कि अब लेटे रहने से काम नहीं चलेगा। यों नींद तो उसे बहुत कम आती है-चार, पांच और छ: के घण्टे उसने चारपाई पर करवटें बदलते ही सुने थे। किन्तु उठने के समय उसके तन- मन पर एक थकान और सुस्ती सी छाई रहती है। डॉक्टर का कहना है कि इसे 'सवेरे की कमजोरी' कहते हैं चार महीनों से वह दवा खा रही है, इन्जेक्शन भी लग रहे हैं, पर रोग है कि जाने का नाम नहीं लेता बस, रात-दिन देह व मन पर एक जड़ता-सी छाई रहती है। भूख भी कम लगती है और कोई काम करने में मन नहीं लगता। परन्तु गृहस्थी है, पति है, तीन बच्चे हैं-काम तो करना ही होता है।
सुशीला ने मुंह पर छितरा आई लटों को हाथ से पीछे किया, साड़ी का पल्ला ठीक किया और उठ बैठी। धीरे-धीरे घर के काम-काज प्रतिदिन की दिनचर्या के रूप में चलने लगे। नौकर छोकरे की सहायता लेकर घर-आंगन बुहारा गया, चूल्हा जला, नाश्ता बना। पति को चाय भेजी। साढ़े-नौ तक भोजन भी बन गया। पति के दफ्तर और बच्चों के स्कूल जाने के बाद वह अपना नहाना-धोना करेगी। तब यदि इच्छा हुई, तो दो रोटी खा लेगी। घर में काम ही, कौन अधिक है। दोनों बड़े लड़के स्कूल चले जाते हैं। बस, पांच वर्ष की चुन्नी ही घर की सफाई और निस्तब्धता को भंग करने के लिए रह जाती है।? पति,
मनोहरलाल अच्छे स्वस्थ पुरुष हैं। अवस्था होगी यही पैंतीस-छत्तीस की, पर देखने में इससे भी कम के ही जंचते हैं। पत्नी की बीमारी से वे भी परेशान हैं। पिछले साल जब सुशीला के पांचवीं मृत सन्तान ने जन्म लिया, तभी से वह बीमार हैं। ऐसी बीमारी तो नहीं कि चारपाई पर पड़ी रहे, या बुखार उतरता ही न हो; पर वह दिनों-दिन कमजोर होती जाती है, चिड़चिड़ी भी। दवा-इलाज में मनोहर बाबू कमी नहीं करते। फल-दूध, जो चाहे, मंगाए-खाए। तनख्वाह तो वे पूरी-की-पूरी पत्नी के हाथ पर रख देते हैं।
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