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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


''दी है।''
''कितनी?''
''पांच हजार एक और दो हजार एक।''
''कुल सात हजार?''
'कुल सात हजार।''
इसके बाद उनमें से कुछ व्यक्ति सलाह करने को एक ओर चले गए। कुछ देर बाद एक ने आकर कहा-''तुमने उन्हें लाहौर जीता-जागता पहुंचाने की कसम ही खाई है न?''
''बस इतनी ही।''
''अच्छा, औरतों में कोई जवान औरत भी है?''
''तीन जवान और एक बूढ़ी है।''
''तब जवान औरतों में से एक आज रात यहां हुमारे पास रहे। बाकी लोग जाए। यह औरत यदि हमें नाराज न करेगी, तो सुबह लाहौर पहुंच जाएगी?''
''सवारियां अमृतसर के मशहूर रईस हाजी नवाब करीमुद्दीन के घर की हें। पर्दानशीन इज्जतदार औरतें हैं।''
''यह उनके सोचने का काम है कि वे सब जान देंगे या उनकी एक औरत अपनी अस्मत देगी।''
''पर मैं कैसे कहूं।''
''तो हम कह सकते हैं। पर तुम्हारा कहना सुहूलियत से होगा।''

''अच्छा, मैं कहता हूं।''
''सिर्फ दस मिनट का समय दिया जाता है, इसके बाद सब के सिर काट दिए जाएंगे।''

ड्राइवर से सब बातें सुनकर हाजी साहब पागल की तरह बाल नोचने लगे। बेगम साहबा बेहोश हो गईं। और दोनों लड़कियां थर-थर कांपने लगी। वे इस बात का निर्णय न कर सके कि क्या करें? अपनी सब जान दें या एक लड़की की आबरू लुटावें। फिर वे किस मुंह से अपनी बेटी से ऐसी गन्दी बात कह सकते थे। उन्होने रोते-रोते कहा-''अफसोस, उन जालिमों से कहो वे आकर हमें कत्ल कर दें। पर मैं जीते जी अपनी बेटियों की इज्जत पर हर्फ नहीं जाने दूंगा।''

ड्राइवर ने कहा-''यह मत समझिए मैंने कहने सुनने में कसर रखी होती। इस वक्त इन लोगों की आंखों में खून उतर रहा है। वे आपको मार कर भी लड़कियों की आबरू लूट सकते हैं। सब बातों पर विचार कर लीजिए। सिर्फ दस मिनट का वक्त है।''

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