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कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


हाजी साहब की आंखों से आंसुओं की चौधार वर्षा होने लगी। उन्होंने पत्नी से कहा-''बैठो, बेगम बैठ जाओ। लाचारी है। बेटियो बैठ जाओ।''

बेगम मुईनुद्दीन ने साँप की तरह फुफकार मार कर कहा-''अब्बाजान, आप मुझे एक रजील बाजारू औरत के बराबर बैठने को मजबूर कर रहे हैं। अपना पिस्तौल निकाल कर मेरे सीने में गोली मार दीजिए। मैं अपनी इज्जत को यों बर्बाद न करूंगी, जान दे दूंगी।''

हाजी साहब ने फिर एक बार ड्राइवर की ओर देखा धीरे से कान में कहा-''मान जाओ मिहरबान। दस हजार ले लो, मेरे खानदान की इज्जत बचा लो। ताउम्र तुम्हारा अहसान मानूंगा।''
ड्राइवर ने गुस्से से लाल-लाल आंखें करके हाजी की ओर देखा और उन्हें एक ओर धकेल कर मोटर स्टार्ट कर दी।
हाजी जी ने दोनों हाथ ऊंचे करके कहा-''अच्छा, अच्छा तुम्हारी ही बात रहे भाई। बैठो बेगम, बैठो बैठो।''
उन्होंने धकेल-धकाल कर सबको गाड़ी में ठूंस दिया। भीड़ नजदीक आ चुकी थी। पर इसी बीच मोटर हवा हो गई।

सावन की रात। चौदस का चांद काले-सफेद बादलों में अठखेलियां कर रहा था। पंजाब पर कैसी बीत रही है, यह उसे ज्ञात न था। उसी चांद की चांदनी में कार लाहौर की सड़क पर दौड़ रही थी। बस्ती का कोलाहल दूर होता जा रहा था। यात्रियों के हृदय, जो भय के बोझ से दबे हुए थे यत्किंचित हल्के हो रहे थे। सब कोई चुप थे। उनके सांस की आवाज मोटर की पुर्र-पुर्र में घुल-मिल रही थी। अभी यात्रियों को भय ही भय था। कुल सोलह मील का सफर था, जो आसानी से एक घण्टे में पूरा हो सकता था। परन्तु इन अभागे यात्रियों को एक-एक पल युग के समान जा रहा था। वे जैसे फांसी के फंदे में झूल रहे थे। एक ही क्षण बाद क्या होने वाला है, इसका उन्हें पता न था। परन्तु जिस बात की आशंका थी वही हुआ। छ: मील चलने पर सड़क के किनारे एक गांव आया। इस गांव के बाहर से लगभग  21-22 हथियारबन्द आक्रान्ता सड़क को घेर कर खड़े हुए थे। कार के पहुंचते ही उसमें से एक नौजवान ने हाथ की तलवार हवा में ऊंची करके कहा-

''मोटर रोक दो।...साथ ही 20-25 तलवारें और बरछे म्यान से बाहर निकल आए।''
हाजी साहब और उनकी बेगम का खून सफेद हो गया। वे जल्दी- जल्दी कल्मा पढ्ने लगे।
मोटर को रोक कर ड्राइवर नीचे उतर पड़ा। उसे टार्च के प्रकाश में भली-भांति देख कर आक्रांताओं ने कहा-''अच्छा लहना सिंह है। कहो, गाड़ी में कौन है?''
''मुसलमान सवारियां हैं?''
''सब मर्द ही हैं या औरतें भी हैं।''
''एक मर्द और चार औरतें हैं।''
''कहां जा रहे हो?''
''लाहौर।''
''हम इन्हें मार डालेंगे, सबको नीचे उतारो।''
''मैंने सतश्री अकाल की कसम खाकर इन्हें लाहौर पहुंचाने की प्रतिज्ञा की थी।''
''क्या वे तुम्हारे दोस्त हैं?"
''नहीं।''
''कुछ रकम दी है?''

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