कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
''मगर मेरी लड़कियां और बीबी क्या एक बाजारू रजील औरत के बराबर बैठेंगी?
तुम जानते हो हाजी करीमउद्दीन अमृतसर ही में नही तमाम पंजाब में एक भारी
इज्जत रखता है। तुम्हें यह भी मालूम है कि मेरी बड़ी लड़की नवाब मुईनुद्दीन
की बेगम है। वे जब सुनेंगे कि उनकी बेगम एक बाजारू औरत के साथ गाड़ी में
बैठ कर आई है तो वे उसका मुंह भी न देखेंगे।''
''तो हाजी साहब यह आपकी मर्जी है। आप मत जाइए। मगर बी हमीदन जरूर जाएगी।
एक तो इन्होंने मुझे अपने अकेले को लाहौर पहुंचाने का दो हजार रुपया दिया
है, दूसरे यह मेरी दोस्त है।''
''तो इसका यह साफ मतलब है कि तुम मुझे धोखा दे रहे हो।''
''धोखा देना होता तो हाजी साहेब, यह मेरे बगल में किरपाण है। अभी तुम
चारों को काट फेंकूंगा। अपनी रिवाल्वर के जोश में मत रहना।''
''मगर मैंने तुम्हें पांच हजार रुपया दिया है।''
''तो मैं भी जान पर खेल कर तुम्हें लाहौर पहुंचा आने पर आमादा हूं।''
''लेकिन मेरी लड़कियां और बेगम अस्मत वाली पर्दानशीन शरीफ औरतें हैं। वे एक
रजील, बाजारू औरत के पास नहीं बैठ सकतीं।''
''तब फिर आप मत जाइए। मैं जाता हूं।...ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट करने को
हाथ बढ़ाया।''
हाजी साहब ने आगे बढ़ कर कहा-''नहीं, नहीं भाई, ऐसा मत करो। हमें मौत के
मुंह में मत ढकेलो। यह लो पांच हजार रुपया और ले लो। इस बाजारू औरत को
उतार दो यहीं।''
ड्राइवर ने हँस कर कहा-''पचास हजार लेकर भी नहीं। आप
रुपया मत दिखाइए। रुपया ही लेना होता तो तुम चारों को मार कर उस बक्स में
जो कुछ तुम्हारे पास है सब ले लेता। याद रखो हाजी साहब, हर एक का धर्म है।
मैंने तुमसे पांच हजार रुपया इसलिए लिया है कि तुम्हें और तुम्हारे कबीले
को सही-सलामत लाहौर पहुंचा दूं। मैं इस कौल पर आमादा हूं-अब आप नाहक
हुज्जत कर रहे हैं। शोर बढ़ रहा है मालूम होता है भीड़ इधर ही आ रही है।
बैठना हो बैठिए। वरना मैं चला। बस, मैं अपना कौल पूरा कर चुका।''
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