कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
आगन्तुक को देख कर ड्राइवर सरदार ने कहा-हाजी साहब जल्दी कीजिए। वरना हम
फंस जाएंगे। क्रुद्ध जनों का एक गिरोह इधर ही आ रहा है।''
''लेकिन भाई जान, कोई खतरा तो नहीं है?''
आप अजब बहस में वक्त बर्बाद कर रहे हैं। खतरे के मुंह में तो आप बैठे ही
हैं। झटपट इससे बाहर निकलिए वरना मैं चला।''
हाजी साहब ने सरदार की चिरौरी कर के कहा-''नहीं नहीं मिहरबान, आपने मेरी
इज्जत और जान बचाने का वादा किया है। बखुदा ऐसा न कहें।''
''तो आप फौरन गाड़ी में बैठिए, वरना आपके साथ मुझे भी मरना होगा।''
''बस आधा मिनट।''
इतना कह कर हाजी साहब खण्डहर में लपक गए। और थोड़ी ही देर में उनके पीछे
चार स्त्रियां बुर्के में लिपटी चली आ रही थीं। वे सब जल्दी-जल्दी मोटर
में घुस गईं।
चौदस के चन्द्रमा की स्निग्ध ज्योत्स्ना इस वीभत्स और मनहूस वातावरण पर
आलोक फेंक कर अट्टहास-सा कर रही थी। मोटर में पिछली सीट पर एक स्त्री
सिकुड़ी हुई गट्ठर-सी बनी बैठी थी। उस पर अभी किसी की दृष्टि न थी। हाजी
साहब के साथ जो तीन स्त्रियां थीं, उनमें दो उनकी युवती
पुत्रियां और एक उनकी पत्नी थी। पहले लड़कियां ही उतावली से मोटर
में घुसीं। घुसते ही वे उस स्त्री पर जा पड़ीं। भीतर एक स्त्री
है, यह देखते ही वे भय से चीख पड़ी। भय तो उस स्थान के प्रत्येक परमारणु
में छाप ही रहा था। उसका चीखना सुनते ही हाजी साहब ने रिवाल्वर
उस स्त्री की छाती पर तान दिया और गरज कर कहा-''तू कौन है?''
ड्राइवर ने हाजी जी का हाथ पकड़ कर कहा-''हैं हैं, यह क्या करते हैं?
पहचानते नहीं बी हमीदन हैं, ये भी लाहौर जाएंगी।''
बी हमीदन अमृतसर की प्रसिद्ध वेश्या थी। हाजी साहब उसे अच्छी तरह जानते
थे। उसका प्रसाद भी पा चुके थे। संगीत और रूप दोनों ही से उसने अमृतसर के
धनी-मानी जनों में ख्याति अर्जित की थी। उसकी एक आलीशान अट्टालिका अपनी
थी। हमीदन बुर्का नहीं पहने थी। उसका रुपहला रूप उस चांदनी में इस वीभत्स
और भय के वातावरण में भी बहुत मोहक लग रहा था।
हाजी साहब ने हमीदन को अच्छी तरह पहचान कर ड्राइवर से कहा-''मगर, इसके
क्या माने? मैंने पूरी मोटर का किराया पांच हजार रुपया तुम्हें लाहौर
पहुंचाने का दिया है। अब तुम यह सवारी इसमें नहीं ले जा सकते।''
सरदार ने नाराजी के स्वर में कहा-''जनाब, अमृतसर से लाहौर जाने का चार
सवारियों का मोटर भाड़ा पांच हजार रुपया नहीं होता, सिर्फ पन्द्रह रुपया
होता है। यह पांच हजार रुपया आपके खानदान की इज्जत और जान बचाने तथा अपनी
जान जोखिम में डालने का मूल्य है। नाहक आप चकल्लस में वक्त बरबाद मत
कीजिए। झटपट गाड़ी में बैठ जाइए।''
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