कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
27 वीं अगस्त को आधी रात बीत जाने पर भी अमृतसर नगर नहीं सो रहा था। बहुत-से मुहल्ले धांय-धांय जल रहे थे। अधजले मकान दुमंजिले तिमंजिले ढह-ढह कर गिर रहे थे। उन मकानों में रहने वालों के प्राण बचाने तथा आग बुझाने का कोई बन्दोबस्त ही न था। चारों ओर हाहाकार मच रहा था। बहुत-से स्त्री-पुरुष गिरते हुए मलबों के नीचे दबे हाय-हाय कर रहे थे। बहुत-से बचे-खुचे स्त्री-पुरुष अपने बच्चों को गोद में लिए घिसटते हुए अर्द्ध-विक्षिप्त की भांति गलियों की अंधेरी छाया में अपने को छिपाते हुए नगर से बाहर जाने की चेष्टा कर रहे थे। प्रत्येक क्षण में उन्हें मौत से भेंट करने की सम्भावना थी। झुण्ड के झुण्ड कुछ जन जो जिसके हाथ लगा था, वही शस्त्र-बन्दूक, भाला, बर्छी तलवार, गंडासे, खुरपी, लट्ठ, लोहे की छड़, चीमटे लिए दस-बीस-तीस-पचास या सौ-पौन-सौ का जत्था बांधे विपक्षियों की टोह करते घूम रहे थे। दया-अनुनय विनय का वहां कोई प्रश्न ही न था। यह केवल विद्वेष और क्रोध ही न था, इसमें बदले और प्रतिहिंसा की दुर्दम्य भावना भी थी। मरे हुए जनों की लाशें गली-कूचों में नालियों में जहां-तहां पड़ी थीं। बहुत उनमें सड़ गई थीं और फूल गई थीं। उनमें से असह्य दुर्गन्ध उठ रही थी। उनमें कुछ मुमूर्षु ऐसे भी थे, जिनके कठोर प्राणों को और अधिक यन्त्रणाएं सहन करनी थीं वे सिसक थे। परन्तु इस भय से वे अभागे कराह भी न सकते थे कि कुछ आतातायी उन्हें जीवित समझ उन्हें दो-टूक न कर दें। प्राणों का मोह ऐसा होता है। चारों ओर शोर मचा था। दूर से भांति-भांति की डरावनी आवाजें आ रही थीं। मकानों के गिरने के धड़ाके और बन्दूकों की धमक चारों ओर से सुनाई पड़ रही थी।
इसी समय एक बड़ी-सी मोटरगाड़ी अंधेरी गलियों को पार करती हुई एक विशाल अट्टालिका के सामने आ खड़ी हुई। अट्टालिका प्राय: ध्वस्त हो चुकी थी। मालूम होता है, एक-दो दिन पहले ही उसमें आग लगा दी गई थी। ऊपर की सब मंजिलें ढह गई थीं, छतें सब गिर चुकी थी, केवल झुलसी हुई दीवारें खड़ी थीं। मलवे के ढेर से धुआं निकल रहा था। कोई-कोई धरन अब भी आग के अंगारे की भांति लाल-लाल चमक रही थी।
मोटर खड़ी करके ड्राइवर ने हार्न बजाया। एक मोटा-ताजा सिख सरदार मोटर को ड्राइव कर रहा था। हार्न सुन कर खण्डहर के पीछे से एक सिर धीरे-धीरे बाहर निकला। फिर वह पुरुष चारों ओर चौकन्ना-सा हो देखने के बाद मोटर के निकट आया। इस पुरुष की आयु साठ से अधिक होगी। भरी हुई खिचड़ी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी आंखें, मांसल शरीर, ऊंचा कद। किन्तु फटे और गन्दे वस्त्र, जो राख और धूल में काले हो रहे थे। सिर और दाढ़ी के बालों में धूल भरी थी। पैर में जूता न था। एक हाथ पट्टी में लटक रहा था।
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