कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
चतुरा को एक स्थान पर घोरा के जल में बुलबुले उठते दिखाई दिए। चतुरा ने
वहां पर तुरन्त ही नाक पकड़ कर डुबकी लगाई।
पानी के भीतर उसने चन्नन को एक काठ के खम्भे में फंसा हुआ पाया। उसमें जड़े
एक तार के कांटे में चन्नन के लंगोट का एक डोरा अटक गया था। डोरा बहुत
मजबूत था और खम्भा धरती में गड़ा हुआ। चन्नन बड़ी देर से अपनी मुक्ति के लिए
छटपटा रहा था।''
चतुरा को निकट पाकर चन्नन उत्साह से भर गया। उसकी मदद से वह तुरन्त ही उस
कांटे से निकल गया। दोनों क्षण भर में पानी की सतह पर आ गए।
चन्नन बोला-''चतुरा, अगर तुम जरा भी देर में आते, तो दम घुट कर मेरी
मृत्यु हो गई होती। विजय का पुरस्कार छोड़कर भी तुम चले आए!''
''भगवान, तुम्हें बचाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने मुझे ऐसी मति दी।''
''नहीं करते तुम गुलाबी से प्रेम?''
''नारी का प्रेम फिर-फिर मिल सकता है, लेकिन एक मित्र का प्रेम? मित्र को
इस तरह मृत्यु के चक्कर से बचा लेने का आनन्द? दोस्त, यह कितनी बड़ी चीज
है! मैंने इसे प्राप्त किया!'' -चतुरा ने चन्नन का हाथ पकड़ कर
कहा।
''लेकिन-'' चन्नन ने सहसा मन्दिर के आंगन की तरफ देखा।
वे दोनों मन्दिर के करीब पहुंच गए थे। दोनों ने भीड़ को पुकारते हुए
सुना-''महीपाल की जय!''
दोनों ने एक दूसरे को देखा। एक-दूसरे की बात समझ गए। दोनों धीरे-धीरे
मन्दिर के आंगन में पहुंच गए। गुलाबी ने महीपाल का हाथ छुड़ा कर चतुरा का
हाथ पकड़ लिया।
''न्यायत: दौड़ में पहला चन्नन हैं।''-चतुरा ने हाथ पकड़ कर चन्नन को खींच
लिया।
''नहीं गुलाबी, इस दौड़ में तुम्हारे बदले मुझे पुनर्जन्म मिल गया और यह
मित्र-यह सबसे बड़ा पुरस्कार है।''
महीपाल ने फिर गुलाबी का हाथ पकड़ लिया-''मार्ग की बाधाएं मैंने नहीं
बनाईं। दौड़ में मैं ही पहला आया हूं।''
चतुरा और चन्नन, दोनों ने भीड़ से बाहर निकलते हुए पुकारा-''महीपाल की
जय!''
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