कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
''मन्दिर के माली की लौंडिया-गुलाबी; उसी के लिए हो रही है यह दौड़!''
''दौड़ क्या, स्वयंवर रचा जा रहा है।''
''बड़ा उस्ताद है उसका बाप! वैसे तो कोई तैयार नहीं हुआ इस लड़की को ले जाने
के लिए। लेकिन भाई, वाह! यह नुस्खा बड़ा बढ़िया रहा!''
''चन्नन मार ले जाएगा बाजी। वह तो तीर सा चला जाता है पानी में।''-एक ने
कहा।
दूसरे ने जवाब दिया-''चतुरा भी क्रुछ कम नहीं है।''
''चन्नन के सामने कौन ठहर सकता?''-पहले ने फिर अपनी बात पर जोर दिया।
दूसरे ने हाथ बढ़ा कर कहा-''बाजी रखते हो?''
''दस-दस रुपया!''
''मंजूर है।''
''दिखाओ भी तो रुपए।''-पहले ने अपनी जेब से एक नोट निकाल कर कहा।
''रुपए दिखा कर क्या होता है? बात का धन क्या छोटा है? मैं क्या कोई
लुच्चा-लफंगा हूं?
इतने में ही दर्शकों की भीड़ में एक उतावली पैल गई और तैराकों के बीच में
एक तत्परता। वे सब के सब पुल की मेंढ़ पर से पानी में कूदने के लिए तैयार
हो गए। उन सबकी आंखें दूर, मन्दिर की दीवार पर खड़ी, गड़ी हुई थीं।
उसी समय गुलाबी ने अपनी साड़ी का छोर अपने हाथ से उठा कर नीचे कर दिया। सब
के सब प्रतिस्पर्धी कूद पड़े पानी में एक ही साथ।
कूदते ही चन्नन सबके आगे हो गया। एक ही मिनट में वह सबसे आगे के तैराक से
भी कोई तीस गज आगे हो गया। वह आगे का तैराक था, चतुरा।
चतुरा की प्रगति देख चन्नन ने नाक पकड़ कर दुबकी ली और पानी के नीचे छिप
गया। प्रतियोगियों को भ्रम में डाल देने के लिए ऐसा वह अकसर किया करता था।
भीतर ही भीतर पानी को काटता हुआ, जब वह विजय के स्थल पर सबसे आगे खड़ा हो
जाता तो सभी चकित रह जाते थे।
लेकिन चतुरा ने साहस नहीं छोड़ा। वह तेजी से पानी को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा
था और प्रत्येक क्षण चन्नन को पानी से ऊपर निकल गुलाबी का हाथ पकड़ते हुए
देख रहा था।
पर चन्नन नहीं दिखाई दिया। चतुरा मन्दिर की दीवार के निकट पहुंच गया।
गुलाबी उसकी ओर अपने हाथों को हिलाती हुई कहने लगी-''चतुरा! चतुरा!''
लेकिन चतुरा नहीं बढ़ा उसकी तरफ। एक गहरी छाया उसके मन में फैल गई। भारी
अनिष्ट की आशंका में वह फिर लौट गया पुल की ओर। वह अपनी आर्त पुकार से
घोरा के दोनों तटों में प्रतिध्वनि उपजाने लगा।-''चन्नन! चन्नन!'' अन्य सब
प्रतियोगी, उसकी मूढ़ता पर आश्चर्य कर रहे थे।
दौड़ में तीसरा आने वाला महीपाल था। वह मन्दिर की दीवार पर चढ़ कर गुलाबी का
हाथ पकड़ने दौड़ गया। गुलाबी भागती हुई बोली-''ठहरो! ठहरो! नदी में कोई
भयानक घटना हो गई है। उसको भुला कर तुम्हारा मेरा हाथ पकड़ना-यह मनुष्यता
नहीं है''
''घटनाएं होती ही रहती हैं। बड़े-बड़े नामधारी तैराको को हराकर मैं दौड़ में
पहला आया हूं-यह कोई घटना नहीं? अपने प्रण से भागो नहीं। मुझे अपना हाथ
पकड़ लेने दो। फिर मैं अपने प्राणों के विसर्जन पर भी देख लूंगा
कि घटना कहां पर हुई है।''-महीपाल ने कहा।
''पहले चतुरा आया है।''
''पहले मैं आया हूं, जिसने तुम्हें पकड़ लिया।''-महीपाल ने गुलाबी का हाथ
पकड़ लिया। अब तक अधिकांश तैराक और बहुत से दर्शक मन्दिर के आंगन में घुस
आए थे। सबने उन दोनों के चारों ओर घेरा बांध कर कहा-''महीपाल की जय!''
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