कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
''नहीं पिताजी, मैं जरा भी डरपोक नहीं हूं। धरती पर क्या पानी के भीतर भी
मैं अपना साहस दिखा सकता हूं। मेरी बराबरी कोई नहीं कर सकता। आपको जरा भी
इस मामले की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।''
-चन्नन ने कहा-''पिताजी, घोरा नदी के भीतर की इस दौड़ में पहला निकलने वाला
एक ही दिन में सारे शहर में प्रसिद्ध हो जाएगा।''
''और अगर तुम पीछे रह गए, तो?''
ऐसा सोचना ही क्यों चाहिए आपको? नहीं आया, तो भी क्या हानि है? दौड़ में एक
ही तो पहला आता है।''
लेकिन वह बहू जो हाथ से चली जाएगी!
चन्नन ने अपने पिता के सामने फिर किसी अभिमान की बात नहीं कही। वह अपने
बाहुबल का भरोसा रखता हुआ चला गया।
दूसरे दिन शहर और मुहल्ले के बहुत से क्वारे नवयुवक सुबह से ही आकर पुल पर
जमा हो गए। उन्होंने उस पार गुलाबी के पास सन्देश भेजा-''हम लोग यहां पानी
की दौड़ के लिए तैयार हैं। और तुम्हारे संकेत की प्रतीक्षा में हैं।''
गुलाबी ने मन्दिर की दीवार पर चढ़ कर, दूर पुल की ओर नजर की। प्राय: एक
फर्लांग की दूरी पर होगा वह। लगभग दो दर्जन नवयुवक नंग-धड़ंग, एक-एक लंगोटे
पहने, पुल की परिधि पर खड़े थे और उनके पीछे क्षण-क्षण बढ़ते हजारों दर्शकों
का समूह था।
एक तरफ एक दर्शक बोला-''क्या होगा यहां?''
दूसरे ने जवाब दिया-''तैराकी का दंगल। कौन करा रहा है, न जाने?''
एक तीसरे ने उनके भोलेपन पर अपनी चतुराई की कील ठोक दी-''गांव से आए जान
पड़ते हो, राज्यपाल के कप की दौड़ है।''
दूसरी तरफ एक व्यक्ति कह रहा था-''लेकिन इनमें से कुछ तो यों ही शौकिया
चले आए हैं। कोई हिम्मत नहीं जान पड़ती इनमें। शीघ्र ही, बिना
पानी में कूदे, कोई बहाना कर लौट जाएंगे।''
दूसरे ने कहा- ''मुकटू जरूर तैरने की कला में होशियार है; मगर सौ-पचास गज
तक गनीमत है-पानी को चीर सकता है वह। उससे ज्यादा दम साथ नहीं दे सकता
उसका-टें बोल जाता है।
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