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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


''क्या मतलब है तुम्हारा?''
''उसकी मंगनी हो गई मेरे साथ।''
''यह नहीं हो सकता! कभी नहीं हो सकता!''-चतुरा चिल्लाया।  
''क्यों नहीं हो सकता? उसके पिता ने वचन दे दिया है।''
''उनसे पहले उनकी लड़की जबान हार चुकी है। कह नहीं चुकी वह-जो तैरने में पहला होगा, मैं उसी से अपना विवाह करूंगी।''-चतुरा ने प्रतिरोध किया।
''उसके कहने से क्या होता है?''
''विवाह उसका है, उसके कहने से होगा क्यों नहीं कुछ?''-चतुरा बोला-''यह चोरी का रास्ता है। अगर ऐसे ही गुलाबी तुम्हारे मन में गड़ गई है, तो क्यों घोरा की गहराई से डरते हो?''
''डरता कौन है?''-चन्नन ने ऊंचे स्वर में कहा।
''तुम्हीं तो। नहीं तो उसके पिता से वचन ले लेने की क्या जरूरत थी? चन्नन, मैंने तुम्हें ऐसा डरपोक नहीं समझा था।''
''मैं ऐसा डरपोक नहीं हूं।
''तो कल तैरने के लिए तैयार रहो। अभी जाकर अपने पिताजी से कह दो, गुलाबी की मंगनी नहीं हो सकतो। उसने खुद अपना स्वयंवर रचा है।''
चन्नन ने कुछ सोच-विचार कर कल-''अच्छी बात है।''
''शाबाश! जाओ फिर, देर न करो। मैं भी अभी सारे मुहल्ले में इस बात को मशहूर करता हूं। हम दो ही क्यों, जिस किसी क्वारे नवयुवक की इच्छा होगी गुलाबी के लिए, वह तैर सकता है।''

चन्नन ने जाकर अपने पिता से यह बात कह दी। उसने जवाब दिया-''गुलाबी का पिता चाहे जिससे उसका विवाह कर सकता है।''
''पिताजी! वे लोग बड़ा हंगामा मचा देने पर उतारू हैं। कहते हैं, गुलाबी का स्वयंवर होगा। अगर उनकी बात न मानी जाएगी, तो पिताजी क्या बताऊं...वे बड़े शरारती लड़के हैं!''
''मैं कहता हूं, तुम बड़े डरपोक हो।''

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