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कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


''फिर क्या यह जो सोने का लाकेट मैं अपने गले में पहनती हूं, यह उतार कर दे दूं

''तो क्या दूसरों के नौजवान बेटे, इस मद में भरी घोरा के पानी में डूब मरें-उनकी किसी हड्डी का भी पता न चले? नहीं, होशियार तुम हो!''
''क्या चाहते हो फिर?''-गुलाबी ने पूछा।
''जीवन का दाव लगाने वाले को उसके योग्य वस्तु का दान!'' चतुरा ने थोड़ी-सी गति देकर कहा-''बस, तुम समझ लो।''
गुलाबी हँसने लगी-''पिता जी से पूछना पड़ेगा।''
''हमने तो अपने माता-पिता किसी से भी नहीं पूछा है।''-चन्नन ने जवाब दिया।
गुलाबी ने कुछ सोचा-विचारा और कहा-''अच्छी बात है।''  
''कहो भी तो क्या है वह अच्छी बात!''
गुलाबी ने पैर का अंगूठा मोड़ कर धरती पर दबाया। चतुरा बोला-''कहती क्यों नहीं, तैरने में जो सबसे पहले होगा, तुम उससे विवाह कर लोगी।''
गुलाबी हँसने लगी और सबने उसकी सहमति मान ली।
दूसरा दिन इस दौड़ के लिए रखा गया। चतुरा और चन्नन की यह बात सारे मुहल्ले में और फिर सारे शहर में प्रसिद्ध हो गई। और भी अनेक नवयुवक उस दौड़ में भाग लेने के लिए तैयार होने लगे। उसी दिन संध्या समय गुलाबी के पिता ने अपनी लड़की की शादी चन्नन के साथ कर देने के लिए उसके पिता को वचन दे दिया। जब उसने घर आकर यह खबर चन्नन को दी, तो वह उसी समय दौड़ कर चतुरा के पास गया और बोला-''भाई, मुझे तो अब कल तैरने की कोई जरूरत नहीं रही।''
''क्यों?''
''वह बिना प्रतियोगिता के ही मुझे प्राप्त हो गई।''-विजय की भारी खुशी के साथ उसने कहा।

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