कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
चतुरा और चन्नन हर वर्षा ऋतु में घोरा की चुनौती की उपेक्षा करने के लिए
उसमें कूद पड़ते कमर बांध कर। वे उसमें तैरते-तैरते मुरलीमनोहर के मन्दिर
की दीवार पर चढ़ जाते और गुलाबी अपनी नवीन वय की संधि पर खड़ी हुई, बड़ी
विचित्र मुसकान से उन दोनों के साहस की अभ्यर्थना करती।
हां, गुलाबी ने ही उन दोनों मित्रों के बीच में एक गहरी खाईं खोद दी। एक
दिन चतुरा बोला-' 'चन्नन, गुलाबी ने मेरे तैरने के कौशल की प्रशंसा क्री
है।'' चन्नन ने मुट्ठी बांध कर जवाब दिया-''नहीं, मेरे कौशल को सराहा है।''
और, उन दोनों के बीच विग्रह बढ़ चला। उनकी आपस की फूट का कोई निराकरण नहीं
कर सका। अन्त में, दोनों ने गुलाबी के
पास आकर ही इस बात का फैसला करना चाहा। इस बार वे थल की राह से बहुत घूम
कर, रेल के पुल से, मुरलीमनोहर के मन्दिर में गए। उन्हेंने पूजा का बहाना
बनाया और धीरे-धारे गुलाबी से अपने मर्म की कथा कह डाली।
गुलाबी जरा हँस कर बोली-''हां, मैंने किसी के तैरने की प्रशंसा तो जरूर की
है।''
''तुमने मेरी प्रशंसा की है।''-चन्नन बोला।
गुलाबी बोली-''हो सकता है।''
चतुरा रुष्ट होकर कहने लगा-''नहीं, तुमने मेरी ओर देख कर कहा था।''
गुलाबी बोली, गालों पर हाथ रख कर-''मुझे तो कुछ भी याद नहीं है। लेकिन
मेरी तारीफ को लेकर तुम्हें क्या करना है?''
चतुरा ने जवाब दिया-''वाह, करना कैसे नहीं है; उससे मेरा उत्साह बढ़ता है।''
गुलाबी को कुछ याद आई; वह बोली-''क्या हानि है? तब एक बात हो सकती है। तुम
दोनों काठ के पुल पर से एक साथ नदी में कूदो-जब मैं यहां से अपना दुपट्टा
हिला कर इशारा करूं।''
दोनों बड़े जोश में भर कर बोले-''स्वीकार है।''
''और, जो सबसे पहले तैर कर मुझे छू लेगा, वह तुम दोनों में श्रेष्ठ होगा।
फिर क्यों कोई संशय रह जाय? है न ठीक?''
''हां, स्वीकार है।''-दोनों बोल उठे।
चन्नन ने मोह में पड़ कर कहा-''लेकिन इसके बदले में पहले आनेवाले को मिलेगा
क्या?''
''मैं श्रेष्ठ कह कह उसकी प्रशंसा करूंगी, कह तो रही हूं।''
''कोरी प्रशंसा से क्या होगा?''-चन्नन ने कहा-''प्राणों की बाजी लगानी
पड़ेगी हमें।''
चतुरा ने बड़े विस्मय से चन्नन की ओर देखा। चन्नन कहने लगा-''क्या होगा
चतुरा? कोरी प्रशंसा से क्या होगा?''
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