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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


स्पर्धा

गोविन्दवल्लभ पन्त

इस पार रहते थे चतुरा और चन्नन-दोनों एक ही मुहल्ले के निवासी, बचपन के साथी मित्र। खेल-कूद में दोनों की बड़ी प्रीति थी। स्कूल बिना कुछ पढ़े-लिखे ही छोड़ दिया। दिन भर इधर-उधर घूम कर ही वख्त बिता देते थे। दोनों के सिर पर माता-पिता मौजूद थे, भोजन, वस्त्र और निवास की कोई चिन्ता थी नहीं उन्हें।

कभी वे गुल्ली डंडा खेलते और दौड़ लगाते, कभी कबड्डी खेलते और पतंग उड़ाते। अखाड़े में वे कुश्ती लड़ते, डंड-बैठक लगाते, भंग घोटते, तेल की मालिश करते और नहा-धो, धुले कपड़े पहन जब छाती बाहर निकाल, माथा ऊंचा कर, बाजार में निकलते, तो सब लोग उनके स्वास्थ्य की प्रशंसा करते।

उन दोनों के पिता दो सेठों की कोठियों में प्रधान दरबान थे। जब अपने लड़कों को वह देखते, तो आपस में बातचीत करते-''क्या करना है पढ़ा कर हमें। तन्दुरुस्ती उस विद्या से हजार गुना अच्छी है, जो समय से पहले नौजवानों की रीढ़ तोड़ कर उनकी आंखों पर चश्मा रख देती है।''

बीच में थी घोरा नदी। गर्मियों में बिलकुल दुबली-पतली-छोटे-छोटे बच्चे भी जिस पर पैर रख कर पार हो जाते थे। लेकिन बरसात में जब धीरे-धीरे घोरा नदी का विस्तार बढ़ जाता, तब दोनों तटों पर की काफी भूमि गर्भस्थ कर वह ऊपर चढ़ जाती-बड़ी-बड़ी दीवालों को ध्वस्त कर देती, पेड़ों को जड़ से उखाड़ कर अपने साथ बहा ले जाती और ऊंचे ऊंचे मकानों को अपनी लहरों के वेग से कम्पायमान कर देती।

घोरा के इस पार थी नगर की नई आबादी और उस पार था प्राचीन शहर। नए और पुराने का अटूट सम्बन्ध था। घोरा नदी जब दुबली-पतली रेखा-सी बहती, तब वह सम्बन्ध हजारों मार्गों से होता रहता; पर जब वह अगाध सलिला हो जाती, तो उसके ऊपर के तीन पक्के पुल ही नये और पुराने की एकमात्र कड़ियां हो जाते।

उन तीनों पुलों के नीचे से नई वर्षा के द्वन्द्व से मटियाला बना हुआ अथाह जल और उसका वेग मनुष्य के बल को चुनौती देता। वह मनुष्य के सहज प्रवेश का अवरोध कर उसकी हँसी उड़ाता।

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