कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
''वाह, क्या बात कही है बाबू ने।'' त्रिलोक सिंह ने दाद देकर कहा-''बिलकुल
ठीक।''
''अच्छा तो ऐसा ही सही।''-नवीन ने कहा-''यह लो दुअन्नी।''
दोअन्नी नहीं, पांच पैसा। तुम भी पांच पैसा निकालो।''
मदनमोहन के पास छ: पैसे थे।। अभी सब्जी लेकर लौटा था बोला-''यह लीजिए छ:
पैसे, वरना एक पैसा कम होगा।''
''कोई बात नहीं।'' त्रिलोक सिंह ने कहा-जहां चार आने की चोट सहता था, वहां
एक पैसा क्या है?''
''नहीं'', चन्द्रकान्त ने कहा-''तुम पांच पैसा देगा। छ: पैसा मैं दूंगा।''
''वह क्यों ?''-नवीन ने पूछा।
''बस, हमारा फैसला है।''-चन्द्रकान्त ने कहा।
''यह नहीं होगा''।-मदन गोपाल ने कहा-''छ: पैसे मैं दूंगा।''
''अब आप लोग झगड़ा खत्म भी करेंगे, या चलते ही जाएँगे?''-त्रिलोक सिंह ने
सवाल किया।
चन्द्रकान्त ने कहा-''छ: पैसे मैं देगा। मैं देगा, बस!''
इतनी जोर से चन्द्रकान्त ने अपनी बात कही थी कि नवीन और मदन गोपाल चुप हो
गए। तीन पैसे नवीन को वापस देकर चन्द्रकान्त ने एक चवन्नी जेब से निकाली।
इससे वह घर लौटने से पहले हलवाई की दुकान पर पूरी का मजा लेता। मगर अब
केवल अढ़ाई आने रह गए थे।
पर चन्द्रकान्त को इस तरह छ: पैसे दे देना जरा भी बुरा प्रतीत नहीं हुआ।
त्रिलोक सिंह को चवन्नी देकर जब वह चला, तो न जाने क्यों, बहुत खुश
था-जैसे उस पर से कोई बोझ उतर गया हो।
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