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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


''आप दोनों साहब कोई फ़िक्र न करें।''-सिख ड्राइवर त्रिलोक सिंह कह रहा था-''चवन्नी आप में से किसी की नहीं थी। जिसकी थी, उसके पास चली गई।''
चन्द्रकान्त आकर नवीन के पीछे खड़ा हो गया। नवीन ने घूम कर उसकी ओर देखा, फिर त्रिलोक सिंह की ओर मुड़ कर कहा-''मगर भाई, मैं कह रहा हूं, वह मेरी थी। तुमने उसे फेंक दिया, तो ठीक किया। मगर अपनी चवन्नी तो ले लो।''

''नही भाई''-मदन गोपाल ने कहा-खोटी चवन्नी मेरी थी। ये तो ऐसे ही दोष अपने ऊपर ले रहे हैं। संभालो अपनी चवन्नी और हमें जाने दो।''
चन्द्रकान्त की समझ में कुछ भी नहीं आया-यह माजरा क्या है? ये दोनों आदमी आखिर चवन्नी देने के लिए इतने बेताब क्यों हैं? इसी उधेड़-बुन में खड़ा चन्द्रकान्त आंखें झपकाता रहा।

त्रिलोक सिंह ने कहा-''लीजिए, ये तीसरे महाशय भी आ गए। ये भी शायद यही कहने आए हैं कि खोटी चवन्नी इनकी थी।''
चन्द्रकान्त अचकचा गया। एक-दो कदम पीछे हट कर उसने अपने-आप पर काबू पाया। फिर अनायास वह बोला-''हां, खोटी चवन्नी हमारी थी!''

त्रिलोक सिंह ठठाकर हँस पड़ा; दाढ़ी के बालों को खोसते हुए बोला-''तो मैं भी कह दूं, मेरे पास तीन खोटी चवन्नियां नहीं आईं। केवस एक आई थी, जो अब मेरे पास नहीं है-किसी नाली में पड़ी अपना मुंह काला कर रही है। अब आप जाइए-जो हो गया, सो हो गया।''

नवीन क्रोध में आ गया बोला-''वाह, यह कैसे हो सकता है! कसूर किसी का और सजा आप भुगते। आपका नुकसान क्यों हो?''  
''तो आप लोग आपस में फैसला कर लें। जिसकी खोटी चवन्नी थी, वह चार आने मुझे दे दे। बस, झगड़ा खत्म।'' त्रिलोक सिंह ने फैसला देते हुए कहा।

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