कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
|
0 |
स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
खाना खा कर उसने अपनी पत्नी से, जो गले में दुपट्टा डाले चूल्हा चौका
संभाल रही थी, कहा- ''मैं बाहर जाता हूं। जरा घूम आऊंगा।'' और फिर,
अंधेरी-उजली सड़कों पर वह देर तक घूमता रहा। फिर लौट कर सोया, तो नींद ऐसी
गहरी आई कि पता भी नहीं चला और सवेरा हो गया।
वैसे रोज सुबह वह घूमने नहीं जाता। मगर आज हवा की ताजगी और मीठी नींद के
आराम से चन्द्रकान्त का दिल बहुत प्रसन्न था।
नाश्ता करके वह बाहर निकल पड़ा। अनायास ही उसके पांव गोल दायरे की ओर उठ
गए। एकाएक उसने देखा-सामने टैक्सी खड़ी है और उसके बाहर सिख ड्राइवर दो
आदमियों से बहस कर रहा है।
उत्सुकता उसे आगे खींच ले गई। अरे! ये दो आदमी तो उसके कल वाले साथी हैं!
सर्दी जा चुकी थी, मगर गर्मी का आगमन अभी नही हुआ था। सो धूप अच्छी नहीं,
तो बुरी भी नहीं लगती थी। तभी खुली धूप में सुबह के साढ़े-सात बजे चार आदमी
बातों मे लगे हुए थे।
|