कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
होंठों की पपड़ी पर जबान फेरते हुए चन्द्रकान्त ने अपने पांच वर्ष के बेटे से कहा-''जा मुन्ना, मां से बोल खाना लाए।''
''अच्छा बाबा।'' कहकर बच्चा घर के अन्दर चला गया।
चन्द्रकान्त बरामदे में चारपाई पर बैठा था। उसके पांव बराबर हिल रहे थे। कुहनियों पर उंगलियां कसे वह एकाएक मुसकरा उठा। उसे टैक्सी के क्लीनर का चेहरा याद आ गया। आसमान की ओर देखकर उसने जबान से जोर का एक शब्द किया और फिर चारपाई पर लेट गया। दिन का प्रकाश लगभग ओझल हो चुका था। आसमान पर तारों की चमक बड़ी सुहावनी लग रही थी।
ओह! एक और दिन चला गया। वह मोटर वाला काम अगर बन जाए, तो पौ-बारह हैं, बरना आज का सारा दिन बेकार हो जाएगा। चांदनी चौक में एक भी तो सौदा नही मिला। ग्राहक अगर दस साइकिलें उठा लेता, तो भी बात थी। या मसूद के यहां सौ गुर्स पेचों की खपत हो जाती। मगर न जाने क्यों, दूसरे सब दलाल पहले पहुंच जाते हैं। चन्द्रकान्त तब पहुंचता है, जब सारा सौदा निबट चुका होता है।
वह उठ कर बैठ गया। बच्चे ने थाली लाकर चारपाई पर रख दी। ''पानी ला-जा।'' कह कर चन्द्रकान्त ने बच्चे को फिर भगा दिया।
चावलों में दाल डाल कर उसने खाना आरम्भ किया। मेहता साहब गाड़ी जरूर ले लेगा। बड़ा आदमी लगता है।
और हां, एक काम तो आज अच्छा हो गया। खोटी चवन्नी इस खूबी से चलाई कि साला क्या याद करेगा। पता भी नहीं चला कि किसने दी है। वैसे अगर बस में आता, तो साढ़े-चार आने लगते-और चवन्नी चलती या नहीं, इसका भी कोई पक्का नहीं था। यहां दो पैसों की बचत हुई और खोटी चवन्नी भी चल गई।
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