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कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


(3)


नवीन ने अपने सुनहरी फ्रेम का ठीक करते हुए-''सचाई वह है, जो तुम्हारा दिल जानता है।''

''नहीं,'' राकेश ने कहा-''सचाई वह है, जो दुनिया जानती है। देखो न, तुमने चोरी नहीं की, मगर चोरी का माल तुम्हारे घर बरामद हुआ लोग तुम्हें चोर समझेगे या किसी और को?''

''समझा करें,'' नवीन ने झल्ला कर कहा-''मगर मैं तो जानता हूं कि चोरी मैंने नहीं की।''

''तुम लेखक हो न। तभी ऐसी बहकी-बहकी बाते करते हो।''-मनमोहन ने कहा।

तीनों मित्र सिगरेट के धुएं से भरे कमरे में बैठे बहस कर रहे थे और रह-रह कर नवीन को टैक्सी के क्लीनर का चेहरा दिखाई दे रहा था। किस उद्दंडता से उसने नवीन की तरफ देखा था। शायद वह समझता था, खोटी चवन्नी उसी की है। मगर नवीन जानता था, उसकी चवन्नी बिलकुल ठीक थी। देने से पहले उसने चवन्नी को उलट- लट कर अच्छी तरह देखा जो था।

''दोस्तेंवस्की के उपन्यास 'अपराध और दंड' के नायक दास्कोल-निफाफ को मालूम था कि जुर्म उसने किया है।''-नवीन ने कहना आरम्भ किया-''किसी को उसके अपराध का पता न था, फिर भी उसकी आत्मा ने स्वीकार नहीं किया कि वह निरपराध है। इसलिए वह जुर्म के स्थान पर वापस गया, यह जानते हुए भी कि वह पकड़ा जाएगा। और, दंड पाकर उसकी अपराधी आत्मा को जैसे एक असह्य बोझ से मुक्ति मिल गई।''

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