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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


कहां जाना है, मन को यह निश्चय करने का बोध ही नहीं हुआ। दूसरे विवाह की बात सुन कर परिवार से दूर भाग कर, किसी प्रकार वे अपने को बचा लें और सब लोग समझ लें कि उनका प्रेम कितना अटल है, इसी धारणा के अनुसार विह्वल-से वे स्टेशन पर पहुंच कर टिकटघर की खिड़की पर खड़े हो गए। तभी कानों में आवाज पड़ी-''बाबू, मथुरा का टिकट दे दो।''

यन्त्रचालित की भांति कमल ने भी अनुकरण किया और उन वृद्ध सज्जन के पीछे-पीछे जाकर गाड़ी में बैठ गए।
वृद्ध मथुरा निवासी एक पण्डा थे-बड़े हँसमुख और दुनिया देखे हुए अनुभवी व्यक्ति थे। बात की-बात में अपना यजमान पक्का करके मित्रता कर लेने मे उन्हें देर नहीं लगती थी किन्तु धार्मिक, परोपकारी और सहृदय भी थे। कमलकिशोर की मुखाकृति देख कर वे समझ गए कि उनका सहयात्री अत्यधिक चिन्तित और व्यथित है।

पण्डा जी ने अपनी ही सीट पर स्थान करके उन्हें समीप बिठा लिया और बड़े स्नेह से बातों की झड़ी लगा कर धीरे-धीरे सब मालुम कर लिया।

कुछ देर कमलकिशोर अनिच्छा से प्रश्नों का उत्तर देते रहे, फिर पण्डा जी से कुछ आत्मीयता सी महसूस होने लगी। बातों में रस आने लगा। संतप्त हृदय को सान्त्वना मिली और उन्होंने अपना हृदय उनके सम्मुख खोल दिया।

कृष्ण की बालक्रीड़ा का रोचक वर्णन करके पण्डा जी ने कमल को कुछ दिन वृन्दावन रहने का परामर्श दिया और अत्यन्त स्नेहपूर्ण ढंग से जीवन-मरण की दार्शनिकता समझा कर कहा-''बाबू साहब! मनुष्य को बड़े से बड़े दुख संसार में सहने पड़ते हैं, किन्तु वह सांसारिक जीव है-संसार को छोड़ कर कहां जाए। जीवन-यापन के लिए दुनियादारी में ही भलाई है। कोई जन्म-भर रो भी तो नहीं सकता। सुख के उपरान्त दुख, और दुख के उपरान्त सुख-यही मानव-जीवन का संघर्ष है। भगवान की कृपा से शीघ्र ही आपके चित्त को शांति प्राप्त होगी। मनुष्य को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। सहन शक्ति से काम करना बड़प्पन है। अब आप आए हैं तो मथुरा, वृन्दावन, गोकुल नन्दगांव, बरसाना आदि स्थान देख कर जाइएगा। दुख भूलने का सब से उत्तम उपाय प्राकृतिक सौन्दर्य का अवलोकन और देश भ्रमण ही है।'' बातों ही बातों में रात बीत गई। कितने दिनों के बाद कमलकिशोर को वह उषाकाल रमणीक लगा-हृदय में आनन्द का संचार हुआ।

वृन्दावन पहुंच कर पण्डा जी ने कहा ''मैं आपसे कुछ दिन मथुरा में ही ठहरने की प्रार्थना करता, किन्तु मैं बद्रीनाथ की यात्रा को जा रहा हूं। अनेक जरूरी काम निबटाने हैं। यहां मेंरे एक मित्र का बड़ा-सा घर है। स्थान रमणीक है। मित्र का स्वर्गवास हो चुका है। उन की एक विधवा लड़की है-वह ऊपर के एक भाग में रहती है। शेष घर यात्रियों के ठहरने के लिए किराये पर उठा देती है। वहीं आपके रहने की व्यवस्था कर दूंगा। यात्रा से पहले उससे मिल लूंगा। मित्र उसका भार मुझ पर ही छोड़ गए हैं। इसलिए दूसरे-तीसरे महीने उसकी खबर ले आता हूं।''

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