कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
माता-पिता को जहां सहभोज के समय कमल की अनुपस्थिति बहुत अखरी थी, वहां
उसकी दया-भावना पर मन में गर्व भी हो रहा था। सेठानी जी बार-बार कह रही
थीं-''भगवान करे, उसके प्राण बच जाएं। बड़ी अच्छी लड़की है। कमल की मेहनत
सफल हो जाए।'' नौकर-चाकर और ललिता के अड़ोसी-पड़ोसी भी कमल की सराहना कर
रहे थे। बड़े आदमी के पुत्र में भी इतनी दया-भावना!
कुछ वर्ष पूर्व कमलकिशोर की प्रथम नवविवाहिता पत्नी का देहावसान हो गया
था, जो अद्भुत सुन्दरी थी और कुछ ही समय में कमल को जिससे अत्यधिक प्रेम
हो गया था।
पत्नी की मृत्यु के उपरान्त कमल शोक में इस प्रकार डुब गए कि उनकी दशा
उन्माद तक पहुंच गई। खाना-पीना, पढ़ना-लिखना सब छोड़ बैठे। होठों पर
मुसकराहट भूल कर नहीं आती थी। हृदय की प्रसन्नता गायब हो गई थी जीवन में
कुछ रस नहीं रह गया था। रात-दिन उदासी में ही व्यतीत होता-तकिए में मुंह
छिपा कर सिसकियां भरते। कभी चुपके-चुपके आंसू टपकाते और कभी शून्य में
आंखें गड़ाए निर्जन स्वप्न में गुमसुम बैठे रहते। इष्ट-मित्र, परिवार वालों
द्वारा मन बहलाने का उपक्रम शोक के वेग को और भी अधिक बढ़ा देता था।
वे दैनिक दिनचर्या तक की बात जैसे भूल गये थे। प्रात: मां बहुत आग्रह कर
स्नानघर में भेजती, तो भीतर से दरवाजा बन्द करके स्नान की चौकी पर बैठे
रहते। अनिच्छा से किसी प्रकार हाथ में जल लेकर मुख पर डालते, तो स्वत: ही
हृदय की वेदना आंखों में उमड़ पड़ती और घुटनों पर सिर रख कर बालकों की भांति
फूट-फूट कर रो पड़ते।
बाहर बहन-भाई द्वार खटखटाकर अनुनय-विनय करके कहते-''जल्दी आओ, भाई! पिता
मेज पर बैठे चाय के लिए तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।'' तब कहीं वे शरीर
पर पानी डाल कर, उल्टे
सीधे कपड़े पहन कर, बाहर आते और बेमन से चाय का प्याला गले से उतार लेते।
प्रत्येक काम इसी प्रकार कठिनाई से कर पाते। कोई संसार की गतिविधि या
जन्म-मरण की विवशता प्रकट करके यदि उन्हें समझाने की चेष्टा करता, तो उनका
दुख और भी बढ़ जाता और मन ही मन वे उससे रुष्ट हो जाते। ऐसे प्रयत्नों से
उन्हें अपने प्रेम का उपहास होता प्रतीत होता था।
कमल की दशा से माता-पिता अत्यन्त चिन्तित थे। कहीं उन्हें कुछ हो न जाए,
इसलिए किसी भी युक्ति से उनका ध्यान बटाना ही चाहिए, इसी विचार से
उन्होंने एक उच्च घराने की रूपवती विदुषी कन्या से विवाह की बातचीत
प्रारम्भ की। माता ने जिस दिन कन्या का चित्र दिखलाया और कमल को
दुनियादारी समझा कर सारे परिवार को उनकी दशा से जो कष्ट मिल रहा था, उसका
मार्मिक वर्णन करके पुनर्विवाह कर लेने का प्रस्ताव किया, उसी रात चुपचाप
कुछ कपड़े, आदि लेकर वे घर से चल दिए।
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