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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


एक दिन भुवन का पत्र पहुंचा कि वह वायु सेना में भर्ती हो गया है और अवसर मिलने पर मां-चाची, दोनों को अपने साथ ले जाएगा। सैनिक जीवन की बातें सोचते हुए बड़ी बहू का मन चिन्तित हो उठा-देवर के प्रति आक्रोश हो आया कि भुवन के लिए उन्होंने कहीं और कोशिश न कर उसे सेना में भेज दिया है। परन्तु दूसरे ही दिन रामदत्त का पत्र आ पहुंचा। उसने लिखा था-''भुवन की इस विभाग में जाने की बड़ी इच्छा थी। चिन्ता करने की कोई बात नहीं है। अच्छी और सुरक्षित जगह उसे मिली है।'' इससे बड़ी बहू का मन कुछ हलका हो गया।

किन्हीं कारणों से भुवन मां-चाची को अपने साथ नहीं ले जा पाया। पर अब प्रतिमास वह उन्हें खर्च भेज देता था। रामदत्त और कैलाश की ओर से सहायता मिलनी बन्द हो गई थी। धीरे-धीरे पत्र व्यवहार भी कम हो गया। बड़ी बहू चार पत्र लिखतीं, तो उनकी ओर से दो-तीन महीने  बाद एक पत्र आता। समय अपनी गति से चलता रहा।

पारिवारिक जीवन की इस शिथिल गति में सहसा एक अदभुत परिवर्तन हो गया। भुवन का पत्र आया कि उसे पाइलट अफसर के पद के लिए चुन लिया गया है। बड़े उत्साह से उसने पत्र लिखा था। पत्र के शब्द-शब्द से उसकी प्रसन्नता झलकी पड़ती थी। बड़े विस्तार से उसने लिखा था कि कुछ ही महीनों में ट्रेनिंग के बाद उसे पांच सौ रुपये से भी अधिक वेतन मिलने लगेगा। अपने उज्जवल भविष्य का जैसा चित्रण भुवन ने किया था, वह अद्भुत था। बड़ी बहू को लगा, जैसे वह कोई स्वप्न देख रही हो। इतने बड़े सुख की उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी, इसी कारण आज उसका भार उसे असह्य प्रतीत होने लगा। बार-बार उसकी आंखें भर आतीं। नन्हें हरीश और उसकी मां की प्रसन्नता की कोई सीमा ही नहीं थी। कुछ ही क्षणों में गांव भर में यह खबर फैल गई कि भुवन बड़ा अफसर बन गया है। जिसने भी सुना, वह बड़ी बहू को बधाई देने के लिए चला आया।

दो दिन बाद दो अलग-अलग स्थानों से रामदत्त और कैलाश की बहू के पत्र आ पहुंचे। छोटी बहू की ओर से उन्हें इससे पूर्व कभी पत्र नहीं मिला था। दो-चार पत्रों के उत्तर में कभी  एक-आध पत्र आ भी जाता, तो वह कैलाश की ओर से लिखा हुआ होता था। दोनों ही पत्रों में भुवन की पदोन्नति पर असीम प्रसन्नता प्रकट की गई थी।

बड़ी बहू मेले के बीच खड़े हुए बच्चों की भांति चकित दृष्टि स सब कुछ देखती-सुनती रही। अब भी जैसे उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि भुवन उनके समाज का एक असामान्य व्यक्ति बन गया है।

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