कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
एक दिन उसने क्या किया कि ठीक इस हाहाकार के समय बड़े बाबू का दूध उनके पास
पहुंचा- ''बाबू जी, दूध पी लो।''
बड़े बाबू भरे बैठे थे, चीख कर बोले-''कम्बख्त, यह काम करने का वक्त है, या
पीने का?...''
तुरन्त गोपी ने कहा-''बाबू जी! आप दोपहर को खाना नहीं खाते। अब दूध भी
नहीं पीते! आखिर हाथ-पैर...''
''मैं कहता हूं, तुझे इन बातों से क्या मतलब?''
''बाबू जी...''
''कम्बख्त! शोर न मचा। ले जा इसे। नाली में डाल दे, या बिल्ली को पिला
दे।''
गोपी बड़बड़ाता-झुंझलाता लौट गया। कुछ देर बाद दफ्तर में अपेक्षाकृत शान्ति
हुई, तब बड़े बाबू को दूध की याद आई, पुकारा-''ओ कम्बख्त गोपी! कुछ तो सोचा
कर, सबेरे का भूखा हूं। दूध कहां है?''
गोपी ने तुरन्त लकड़ी चादर संभाली और बाजार की तरफ लपका। हतप्रभ, क्रुद्ध
बड़े बाबू बोले-''उधर कहां जाता है?''
''दूध लाने। यह आया दो मिनट में।''
''लेकिन वह दूध...?''
''जी, वह तो बिल्ली को पिला दिया। बेचारी भूखी थी।''
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