कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
प्रासाद के बगलवाले पुष्प-उद्यान में रेवती राजा के साथ पहुंची। पुष-उद्यान के मध्य में परिष्कार-विरहित, उजड़ा-सा कालिका का यह बृहत मन्दिर था। देवी के सामने जाकर वह स्तब्ध हो रही। लगने लगा, जैसे काली के नेत्रद्वय मातृ-हृदय के स्नेह से परिपूर्ण होकर उस पर गड़े हुए हैं। श्रद्धा से रेवती ने उनके विशाल पादमूल में मस्तक अवनत कर दिया और पुष्पांजलि देते समय सहसा काली के चरणों की विशेषता ने रानी को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। काले पत्थर
के चरणों में ऊंचे घुण्डीदार पत्थर के ढक्कन लगे हुए थे और पत्थर के ये भारी ढक्कन अल्प-अल्प हिल भी रहे थे। भीत रानी पूजा रत राजा से लिपट गई। रणधीर ने आंखें खोलीं, उस कम्पित नारी को हृदय में समेट लेना चाहा; किन्तु वैसा न कर सका, पूछा-''क्या हुआ है, रेवा? डर गई हो? अरे कांप क्यों रही हो?''
आर्त स्वर में रेवती ने बताने की कोशिश की-''व...ह...वह...'' तुरन्त राजा उठा और रानी को साथ लिए हुए प्रासाद में चलते-चलते बोला-''वह कुछ भी नहीं! देवी की माया है। तुम अकेली मन्दिर में कभी मत आना। मेरे सिवा यहां कोई भी नहीं आता है।''
रेवती की दिनचर्या थी-नित्य अपनी शून्य शय्या पर से उठना और प्रासाद के पुन:संस्करण में जुट जाना। रणधीर बहादुर केवल अवाक होकर नूतन रानी का कार्य देखता रहता। अल्प समय में उसने महल को वासोपयोगी बना लिया था-इतना कि कोई टूटा हुआ अंश शेष न रहा।
उस दिन रानी पति के कमरे को साफ करती हुई एकाएक अकड़-सी गई। एक आलमारी में चाबी लटक रही थी और कौतूहलवश उसने उसे खोला था। उसके अन्दर रखी हुई वस्तुओं को देख कर वह सिहर उठी और सहम गई। आलमारी में उसने शराब-भरी बोतलों को देखा, गांजा आदि और उनके चिलमों को देखा और देखा नाना प्रकार की गोली-भरी शीशियों को। उनके नाम पढ़-पढ़ कर वह स्तम्भित रह गई और रणधीर की पदध्वनि सुन कर शीघ्रता से आलमारी बन्द कर अलग खड़ी हो गई।
राजा ने गृह में प्रवेश किया। अपने घर का आमूल परिवर्तन देख कर वह हँसा-''तो रानी साहिबा, देखते-ही-देखते महल का तो तुमने आमूल परिवर्तन कर डाला है। अब क्या मेरा भी परिवर्तन-संशोधन करना है?''
रानी मुसकराई और बोली-''शायद किसी दिन वह भी हो जाए?''
प्रथम रानी की मृत्यु की कहानी रेवती यद्यपि दासी के मुख से सुन चुकी थी, तो भी वह अपनी आंखों से काली मन्दिर का रहस्य देखना चाहती थी।
उसी रात्रि को जब रणधीर काली मन्दिर का द्वार रुद्ध कर पूजा कर रहा था, तब रेवती के नेत्रद्वय रुद्ध द्वार की दरार से भीतर देख रहे थे। पूजा शेष कर दो चांदी के दूध भरे कटोरे राजा ने अपने हाथों काली के दोनों पादमूल में रखे। फिर पादमूल के दोनों भारी पत्थर खोल दिए। उन छेदों से फनफनाती हुई दो काली नागिनें निकलीं। उन्होंने दूध पिया। एक को राजा ने तुरन्त बन्द कर दिया, दूसरी के सामने राजा ने अपना हाथ बढ़ाया। नागिन ने मानो चुम्बन की बूंद राजा के हाथ में टपका दी और तब वह छेद में घुस गई। राजा ने रूमाल से रक्त बिन्दु को पोंछा, ढक्कन लगाया और नशे में झूमता हुआ महल में पहुंच कर अपने पलंग पर पड़ कर सो रहा। शान्त धीरता से रेवती ने सब कुछ देखा। वहीं खड़ी रह कर वह न जाने क्या-क्या सोचती रही। उसके बाद दृढ़ निश्चय की छाया उसके मुख पर व्याप्त हुई।
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