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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


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दलसागर के किनारे इस बड़ के नीचे इन दोनों पिंडियों को देखकर आज के कनैला के रहने  वालों के दिल में वह सात शताब्दी पहले की
भीषण घटना जाग्रत हो जाती है। आज भी दूध चढ़ाने की मनौती मानी जाती है। लेकिन, वह गांव भर तक ही सीमित है। भूत भगाने और दूसरे चमत्कारों में दलसागर के बरम-बरमाइन ने कोई करामात नहीं दिखाई, इसलिए वहां कोई बड़ा स्थान नहीं बन शका। पिंडियां पहले की तरह अब भी मिट्टी की ही हैं।

लेकिन पूजा केवल इन्हीं दोनों पिंडियों की नहीं होती। कर्नहट का बाजार कब का विस्मृत हो चुका। सैयद के कोट के बहुत से भागों पर अब खेत हैं, जो बहुत ही उपजाऊ माने जाते हैं और जिनके ऊपर अब शताब्दियों से वंचित छोटी जाति वाले भी अपना अधिकार मनवाना चाहते हैं। इन्हीं खेतों में, जैसा कि पहले बतलाया, थोड़े से पांच-चार गज लम्बे-चौड़े टीले को छोटा कोट कहते हैं। यहां के नीम और झाड़ियों को इस शताब्दी के आरम्भ में कोई हानि पहुंचाने की हिम्मत नहीं करता था। इन्हीं कंटीली झाड़ियों के ऊपर लताएं छाई हुई थीं, जिनमें मौसम के समय लाल-लाल पके बिम्ब के फल दिखलाई पड़ते थे। झाड़ी के भीतर दो-चार ईंटें हैं, जो आकार से बहुत पुरानी नहीं कही जा सकतीं। सैयद अकरम की कोट की बैठक शायद यहीं रही हो। इन्हीं ईंटों को 'सैयद की कब्र' या 'सैयद बाबा' कहा जाता है, जहां चूड़ीहार और दूसरी मुसलमान जातियों के लोग ही घी-मलीदा नहीं चढ़ाते, बल्कि हिन्दू स्त्रियां भी पूजा करने जाती हैं। उनका विश्वास है कि सैयद बाबा मनोकामना जरूर पूरी करते हैं। कनैला के मथुरा पाण्डे ने इस शताव्दी के आरम्भ में सैयद की महिमा बढ़ाने में काफी हाथ बटाया था। हो सकता है कि उन्होंने अपने पूर्वजों का अनुसरण किया हो। वह गांव के एकमात्र और प्रसिद्ध ओझा-सयाना-थे, जिनके पास आश्विन-नवरात्रि में आस-पास के भी कितने ही लोग-विशेषकर लुगाइयां-अपना दुःख दिखाने आती थीं। भूत भगाने में उनकी काफी ख्याति थी। उनके खेत सैयद के कोट के पास थे, इसलिए वे कितने ही बार अपनी आंखों-देखी बातें बतलाते थे। कहा करते थे ''आधी रात की चांदनी में सैयद अपनी नीली घोड़ी भर चढ़कर निकलते हैं। घोड़ी की हिनहिनाहट की आवाज दूर तक सुनाई देती है। फिर चारों ओर घूम कर कभी-कभी अपने भाई-मकरम-के पास मकरनपुर जा, मिलकर लौटते ओर अपनी कोट में समा जाते हैं।'' मथुरा  पाण्डे का कहना था कि सैयद के सामने कोई भूत-बलाय नहीं ठहर सकती। सैयद के मुकाबले में वे महावीर जी को ही मानते थे। पर उनका कहना था, कि जब सैयद थूक देता है, तो उससे भ्रष्ट होने के डर से महावीर जी भी हट जाते हैं।

जो भी हो, आज सैयद नहीं रहे, जिन्होंने लखनदेव को परास्त किया था और दलसागर काण्ड रचा था। आज हिन्दू और मुसलमान, दोनों उनकी पूजा में होड़ करते हैं। बरम-बरमाइन भी  पूजे जाते हैं, लेकिन उनके पूजक केवल हिन्दू हैं।

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