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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


(3)


सैयद अकरम ने आरम्भ के कुछ वर्षों में ही तलवार का जौहर दिखलाया। प्रतिरोध अधिकतर  सम्पत्तिशाली, अर्थात बड़ी जाति के, लोगों से था। वे बड़ी संख्या में तलवार के घाट उतारे गए, उनके घरों को जला दिया गया। इज्जत जाने का इतना भय था कि उनमें से बहुतेरे अपना देश छोड़कर सुदूर सरजू पार या दूसरी जगहों में भाग गए। उनके घरों का कुछ ही दिनों में पता  नहीं था। सैयद के सुर्खरू बनकर अपनी जगहों पर सारे अत्याचार और अपमान को सहने के  लिए बहुत कम लोग रह गए। हरिजन और अर्धहरिजन प्राय: सम्पत्ति से वंचित थे। उन्हें  अपने हाथों की कमाई पर जीना था। ऐसे लोगों को खत्म करना या बराबर छेड़ते रहना कोई  भी शासक पसन्द नहीं करेगा। जिस समय की यह घटना है, उसी समय मध्य एशिया के बुखारा, समरकन्द जैसे बड़े-बड़े नगरों पर चिंगेजखान ने वैसी ही क्रूरता के साथ अधिकार प्राप्त किया था, जैसे भारत में तुर्कों ने। फर्क इतना ही था, कि चिंगेज अपनी विजय के साथ दीन-धर्म का नाम नहीं जोड़ता था। वह सम्पत्तिशाली, ऊपरी वर्ग के, लोगों का जरा भी प्रतिरोध करने पर कत्लेआम करता था। लेकिन इसके लिए जब वह पुरुषों को शहर से बाहर निकालता, तो शिल्पियों को अलग करके पहले अभयदान दे देता। सैयद अकरम के शासन-केंद्र के  आस-पास हिन्दू शिल्पी, सोनार, लोहार, बढ़ई, माली, आदि अब आरम्भिक दिनों को भूलकर अपने काम में पूर्ववत लगे हुए थे। शत्रुओं के स्वयं दूर भाग जाने से अब सैयद निश्चिन्त था।

जवानी की उमर में सैयद अकरम खूंख्वार जरूर था-और उस समय का कौन-सा सिपहसालार था, जो खूंख्वार न होता, खासकर अपने देश से हजारों मील दूर चला आया था और मातृभूमि के मंगोलों के हाथ में चले जाने से वहां फिर लौटने की सम्भावना नहीं थी-पर उमर के  बीतते-बीतते शान्ति और निश्चिन्तता के जीवन ने सैयद अकरम को विलासी बना दिया। उसके हरम में लखनदेव के रनिवास की सुन्दरियां अब उमर में ढल चुकी थीं! फिर सैयद को उतने से ही सन्तोष कहां हो सकता था? एक-एक सुन्दरी तो पहले ही चुन ली गई थी, लेकिन उनके आगम का रास्ता बन्द नहीं था। सालार के दरबारियों में कितनों का काम ही था सैयद के लिए नई सुन्दरियां जुटाना। कहीं भी किसी सुन्दरी तरुणी का पता लगता तो उसे सैयद के पास पहुंचाने में देर नहीं होती। लोगों ने डर के मारे अपनी लड़कियों का तरुणाई से पहले ही ब्याह करना शुरू कर दिया। लेकिन सैयद के लिए ब्याहता और अब्याहता का कोई सवाल नहीं था। हां, ब्याह होने से जल्दी सन्तान हो जाने की सम्भावना थी और सन्तान वाली स्त्री की कीमत सैयद की नजर में गिर जाती थी। बड़ी जाति वालों ने इसी समय अपनी स्त्रियों की रक्षा के लिए उन्हें जवानी में पर्दे में रखना आरम्भ किया।

सैयद ने यह कायदा बनाया था कि जो भी स्त्री गौने आए, उसे एक रात के लिए कोट में ले जाया जाए। इस नियम का उल्लंघन कितने लोग कर पाए होंगे, यह कहना मुश्किल है। और, जब यह छिपा हुआ भेद हो, और यह भी समझा जाता हो कि इससे धर्म या जाति के जाने का प्रश्न नहीं है, तो कितनों ने ही इसको अपनाकर आत्म-रक्षा की होगी, यह निश्चित है। जब सिपहसालार स्वयं इस तरह कर रहा है, तो उसके नीचे के दूसरे तुर्क सरदार अपने मालिक के पथ पर थोड़ा भी चलने से कैसे बाज आते-विशेषकर जब इस तरह का सम्बन्ध उनके दीन की वृद्धि में सहायक था।

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