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कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


*                     *                    *

पर उसे क्षमा मांगनी थी, अत: उसका प्रयत्न बढ़ता गया।
एक दिन वह नित्य की भांति हारा-थका लौटा, तो बैठक के फर्श पर एक कार्ड पड़ा था। चार दिन पहले दक्षिण के किसी सुदूर मन्दिर से वह चला था अपरिचित नागरी और टूटी-फूटी हिन्दी में जो लिखा था, उसका आशय इस प्रकार था-

''स्वामी हरिशरणानन्द जी का देहान्त हो गया। कल उनका भंडारा भी हो गया। अपने को वे गृहस्थाश्रम में आपकी पत्नी का मामा बतलाते थे। सन्निपात में उन्होंने जो कुछ कहा, वह ठीक समझ में नहीं आया। पर आपको पत्र लिखने को वे बार-बार कहते थे कि आपने मुझ पर व्यर्थ सन्देह किया। धन को मैंने सदा तृणवत् समझा है। मैं जा रहा हूं। मुझे क्षमा कीजिएगा, तभी मेरी आत्मा को शान्ति मिलेगी।''
आज भी, जब निरपेक्ष संध्या को पंङुकी की उदास बोली भरती रहती है, मदन अपने आपको उन स्वर्गीय आत्माओं से क्षमा मांगने में असमर्थ पाता है। वह विवश है। और तब, मामा का वह संदेश जैसे अन्तरिक्ष से उस पर हँसता रहता है।

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