कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
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पंडाल में स्वागत के लिए उत्सुक भीड़ जमा थी। वेदी पर सभा-नेत्री की कुर्सी
के समीप एक कुर्सी नेता की प्रतीक्षा कर रही थी। मेज पर नगर के आदर और
श्रद्धा से संजोया हुआ हार प्रतीक्षा कर रहा था।
पंडाल के द्वार पर नेता की जय का स्वर सुनाई दिया। नेता विनय से सिर
झुकाता, सकुचाता हुआ, भीतर आया। दोनों ओर खड़ी भीड़ की दीवारों के बीच से वह
वेदी की ओर बढ़ा जा रहा था। कवियित्री आदर और श्रद्धा से हार
लेकर स्वागत में खड़ी हो गईं।
नेता ने वेदी की तीन सीढ़ियों में से पहली सीढ़ी पर कदम रखा, और हाथों को
जोड़े हुए आंखें उठाईं। कवियित्री हार लिए दो कदम आगे बढ़ आईं। आंखें चार
हुईं।
नेता का कृतज्ञता और विनय के उद्वेग से शिथिल और पसीजा हुआ चेहरा सहसा
कठिन हो गया। आंखें पथरा गईं। दूसरी सीढ़ी पर कदम ठिठक गए। जुड़े हुए हाथ
कमर पर आ गए। चेहरे पर किंकर्त्तव्य-विमूढ़ता की मुद्रा। गले में आए उद्वेग
को निगल, नेता ने वेदी की ओर पीठ और जनता की ओर मुख कर लिया।
कवियित्री फैली बांहों पर आदर और श्रद्धा का भारी हार लिए दीपशिखा की
भांति कांप कर स्तब्ध रह गईं।
अपने आपको संभालने के लिए नेता जरा खांसा। सांसों की स्तब्धता में उसका
कांपता सा स्वर सुनाई दिया-''इस आडम्बर की क्या आवश्यकता है? मैं आदर का
भूखा नहीं हूं। यदि आप मेरा आदर और विश्वास करते हैं, तो अपना
उत्तरदायित्व भी समझिए।''
नेता के पास और शब्द नहीं थे। उसने एक बार और प्रयत्न किया-''आप लोग क्षमा
करें...मुझे यही कहना है...आपके आदर के लिए धन्यवाद।'' नेता
वेदी की ओर देखे बिना ही लौट गया।
पंडाल नेता की निरभिमानता, विनय और कर्मठता के प्रति आदर व्यक्त करने के
लिए तालियों के शब्द और जय की पुकार से गूंज उठा। कवियित्री, माथे पर आया
पसीना पोंछना भूल कर, ओंठ दबाए वेदी से नीचे उतर आईं।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि क्या करूं?
जब रह नहीं सका, तो दोपहर बाद नेता के डेरे पर गया ही। एक बार इतना कहे
बिना तो मैं नहीं रह सकता था-''तुमने यह किया क्या?''
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