कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ 27 श्रेष्ठ कहानियाँचन्द्रगुप्त विद्यालंकार
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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ
कुछ ही दिन बाद सुना कि कवियित्री का विवाह अच्छी आर्थिक स्थिति, परन्तु
सन्दिग्ध सी ख्याति के एक व्यक्ति से होने वाला है। कवियित्री को अपने
विश्वास और आस्था पर भरोसा था। नगर में कवियित्री से सामना होने पर उन्हें
किसी दूसरे ही ढंग में देखा। नेता के साथ बीती घटना के प्रसंग की चर्चा का
कोई अवसर या उससे किसी लाभ की आशा नहीं थी। जल्दी ही सुना कि विवाह हो
गया। फिर, बहुत समय बीत जाने से पहले ही सुना कि विवाह से कवियित्री को
सन्तोष की अपेक्षा पश्चाताप और संताप ही मिला। वे भावना के ज्वार में ठगी
गई थीं, जैसे, अपनी तैरने की शक्ति में अति विश्वास से बाढ़ में कूद जाने
वाला व्यक्ति ठगा जाता है।
कवियित्री ने अपने आपको संभाला। वे समाज सेवा में लग गई और अपने आपको
अपनी कविता में खो दिया।
कवियित्री ने अपने आपको तो खो दिया, परन्तु संसार ने उनकी कविता पाई।
कवियित्री की जीवन शक्ति सब ओर से सिमट कर कविता में बेगवती हो उठी, जैसे
पूरे प्रदेश से सिमटा वर्षा का जल एक मार्ग से जाते समय वेगवान हो जाता
है। वे नगर का गौरव बन गई-दूर-दूर तक उनकी ख्याति फैल गई।
नेता तो झोंपड़ा फूंककर ही राष्ट्रीय कार्य के मार्ग पर चला था। लौटने की
तो कोई जगह या कोई बात थी नहीं। नगर में मानसिक आघात पाकर नगर ही से उसे
विरक्ति हो गई थी। वह जिले के ग्रामों में काम करने के लिए निकल गया। उसने
निःस्वार्थ और अथक परिश्रम से जनता का विश्वास पाया। उसकी बात ही जनता के
लिए प्रमाण बन गई।
तभी अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष का भंवर उठ खड़ा हुआ। इस भंवर में ब्रिटिश
साम्राज्य का जहाज डांवाडोल हो रहा था। साम्राज्यशाही ने आत्म-रक्षा के
लिए भारत को भी अपने साथ बांधना चाहा। भारत की राष्ट्रीय भावना ने
साम्राज्यशाही के प्रयत्न का विरोध किया। देश में उथल-पुथल मच गई।
राष्ट्रीय भावना के प्रतिनिधि नेता फिर जेलों में गए। हमारे नगर का नेता
भी गया। नेता इस बार जेल से लौटा, तो उसके सामने निर्माण का और भी बड़ा काम
था।
विदेशी गुलामी से मुक्त राष्ट्र ने जनता का प्रतिनिधि शासन आरम्भ करने के
लिए चुनाव आरम्भ किया। हमारे नगर और जिले का एक ही निर्विवाद नेता था।
उसकी निःस्वार्थ सेवा और उसका त्याग प्रतिद्वन्द्वीहीन था। वही हमारे जिले
की ओर से निर्विवाद प्रतिनिधि मनोनीत हुआ। इससे नेता को नहीं, जिले और नगर
को सन्तोष था।
नगर अपने इस निर्णय पर स्वयं अपने आपको बधाई देना चाहता था। नगर के अनुरोध
से नेता ने उस अवसर पर नगर में आना स्वीकार किया। नगर की इच्छा
थी कि इस सभा का नेतृत्व नगर का दूसरा गौरव, कवियित्री ही करें।
इस सुझाव और तैयारी का कुछ उत्तरदायित्व मुझ पर ही था। इसीलिए घटना का
आघात मेरे लिए असह्य है।
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