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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


नौकर सब पहुंच गए। उज्जवल प्रकाश से महल जगमगा उठा। रणधीर ने लौट कर रेवती को देखा। उसके अनावृत मुख को देखकर रणधीर विस्मित हुआ। बांह बढ़ा कर उसने रेवती को समेट लिया। फिर अर्द्ध मूर्छित पत्नी को उठा कर ऊपर चला गया।
रेवती जब स्नान कर निकली, तब रणधीर ने अपने हाथों से उसे हीरा-मुक्ता के अलंकारों से भूषित कर दिया। सहसा रेवती ने पूछा-''ये जेवर किसके हैं?''

''ये? ये आभूषण, इस राजप्रासाद के भग्नावशेष, स्वयं मेरी मां के हैं।''

''क्या आप राजा हैं? परन्तु मेरी कुटिया में और मेरे पालक पिता के सामने तो आपने यह सब कुछ नहीं बताया था।'' उसके बाद रेवती विस्मय-विस्फारित नेत्रों से उस गृह का वैभव देखने  लगी।

रणधीर हँसा-विषादपूर्ण; बोला-''कभी एक दिन मैं इस छोटे-से गढ़ का राजा था। लेकिन आज  तो सरकार से पैंशन मिलती है, कई हजार। बस, उसी से गुजारा होता है।''

लछिया पहुंची-''महाराज, रानी साहिबा को कालिका देवी के मन्दिर में ले चलिए।''

''नहीं, इतनी रात को रानी वहां न जाएंगी। इन्हें भोजन करा-कर इनके कमरे में सुला दो।''

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