लोगों की राय

कहानी संग्रह >> 27 श्रेष्ठ कहानियाँ

27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

Like this Hindi book 0

स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


कदम उठाते ही नेता ने देखा, कवियित्री झुकीं और उन्होंने नेता के चरणों के नीचे की धूल समेटकर अपने आंचल के कोने में यत्न के साथ
संभाल ली, जैसे तीन सौ मील से अधिक की यात्रा कर वे इसी उद्देश्य के लिए यहां आई थीं।
नेता ने देखा और उसके शरीर में बिजली कौंध गई। बिजली की इस लपट से उसकी आंखों के सामने फैले काले भविष्य का आकाश फट गया। उसकी आंखों ने अपने सामने अंधकार का असीम व्यधान स्वीकार कर लिया था। अंधकार के व्यवधान में किसी आशा या महत्वाकांक्षा की लौ या टिमटिमाहट की उम्मीद उसने नहीं की थी। परन्तु बिजली की इस निःशब्द तड़प से भविष्य का काला पाट फट गया। सामने भविष्य का काला समुद्र तो था, परन्तु उस समुद्र में चमत्कारिक प्रकाश के लिए प्रकाश स्तम्भ भी था, आंचल के कोने में उसकी चरण रज संभालती भावनामयी कुमारी के आकार में। उसकी कल्पना ने साहस पाया। आजन्म कारावास की चौदह वर्ष की अवधि में वह मर नहीं जाएगा। जीवित रहने के लिए कारण उसके पास है। ...चौदह वर्ष बाद, जब वह श्वेत केश, विरूप चेहरा और निस्तेज आंखें लिए संसार में लौटेगा, तब उसे अपना मार्ग पहचानने और ढूंढ़ने में कठिनाई नहीं होगी।...कर्तव्य के पथ पर अपनाए दारिद्रय और तप में ही स्नेह का प्रकाश उसके थके पांवों को ठोकर से बचाता रहेगा-भावनामयी, प्रतिभामयी इस कुमारी का हाथ उसका हाथ थामे उसे ले चलेगा। कोसों दूर, समुद्र लांघ कर, काला पानी पीकर जीवित रहते समय भव्य आशा उसे सान्त्वना देती रहेगी।

हमारे नगर में नेता के चले जाने के बाद से राष्ट्रीय आन्दोलन के क्रांतिकारी ढंग की बजाय सविनय अवज्ञा आदि का प्रकट और सार्वजनिक ढंग ही अधिक सबल होता गया। कवियित्री क्रान्ति के मार्ग में त्याग की भावना का आदर करते हुए भी इसी माध्यम से राष्ट्रीय कर्तव्य को पूरा करने का प्रयत्न करती रही। और, जब क्रांति के मार्ग में अपने आपको न्योछावर कर देने के लिए तत्पर होकर भी वे एक बार अवसर से चूक गईं, तो फिर वैसा अवसर उतना उत्कटता से आया भी नहीं। जब जीवन था, तो जीवन की मांगें और प्रवृत्तियां भी थीं। कवियित्री कविता लिख कर जीवन को साधारण रूप से ही सार्थक बना सकने की चाह करने लगी।

ब्रिटिश साम्राज्य की अपरिमित शस्त्र-शक्ति को निःशस्त्र जनता के आग्रह के सामने समझौते के लिए झुकना पड़ा। देश ने अपना शासन करने का अधिकार एक सीमा तक पा लिया। जनता की प्रतिनिधि-सरकार ने स्वातन्त्र्य संग्राम के वीरों को जेलों से मुक्त कर दिया। नेता भी आजन्म कारावास की जगह सात ही वर्ष बाद काले पानी से लौट आया। जनता ने इन वीरों के प्रति आदर और श्रद्धा से अपनी आंखें और हृदय बिछा दिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book