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27 श्रेष्ठ कहानियाँ

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :223
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2097
आईएसबीएन :1234567890

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स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ आरंभिक वर्षों की कहानियाँ


विदेशी शासन के न्यायालय से नेता को आजन्म कारावास के दण्ड की आज्ञा हो चुकी थी। उसे काले पानी या द्वीपान्तरवास के लिए भेजे जाने की तारीख भी निश्चित हो चुकी थी। जेल के कायदे से उसे अवसर दिया गया था कि पत्र लिखकर अपने सम्बन्धियों को सूचना दे दे और किसी से मिलना चाहता हो, तो उसे अमुक तारीख से पहले बुला ले।
नेता ने अपनी प्रौढ़ा मां और भाई को पत्र लिखकर अपने काले पानी भेजे जाने की तारीख की सूचना दे दी थी, परन्तु इतनी दूर किसी के मिलने आ सकने की आशा नहीं थी। वह अपने  सम्बन्धियों की आर्थिक बेबसी और अपने मित्रों की राजनीतिक बेबसी जानता था, सो आशा न कर सकने का दुख भी नहीं था। किसी प्रतिकार और पुरस्कार की आशा से उसने यह कदम  उठाया भी नहीं था। वह अपने आपको कर्तव्य की वेदी पर उत्सर्ग कर चुका था। प्राण रहते हुए भी, वह अपने आपको दूसरों के लिए जीवित नहीं समझता था।

परन्तु जेल की कोठरी में नेता को सूचना मिली कि उससे मिलने के लिए कुछ लोग आए हैं, उसने साश्चर्य जेल के फाटक पर जाकर देखा कि उसकी मां और छोटे भाई के अतिरिक्त वे कवियित्री कुमारी भी हैं, जो उसे एक बार देख पाने के प्रयोजन से ही इतनी दूर की यात्रा करके आई थीं। कवियित्री अपनी बात कह सकने का अन्तिम अवसर समझ कर आए बिना न रह सकीं। पर जेल के पहरेदारों की तीक्ष्ण आंखों और सन्देह के लिए कारण खोजते कानों की चौकसी में क्या बात होगी? फिर भी, आंखों की मौन भाषा को कौन रोक सकता था? उन्होंने अपनी बात कही और भावना ने अपनी भूख के अनुसार उसका अर्थ समझा।

जेल में मुलाकात के बीस मिनट गुजरने में कितना समय लगता है। जेल के अधिकारी ने नेता को अपनी कोठरी की ओर लौटने की, और उससे मिलने आए मां, भाई और कवियित्री को फाटक के बाहर लौटने की चेतावनी दी। नेता उन लोगों के चलने की, और वे लोग नेता के चलने की प्रतीक्षा में क्षण भर ठिठके। नेता को ही पहले कदम उठाने पड़े।

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